aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
علی عباس حسینی اردو افسانے کے بنیاد گذاروں میں شامل ہیں۔ انھوں نےاردو افسانے کو حقیقت کا رنگ دیا۔ انھیں ہندستانی تہذیب اور عوام کے مسائل سے خصوصی دلچسپی تھی۔انھوں نے اپنے افسانوں میں مختلف کرداروں کے ذریعے عام انسانوں کے شب و روز کی عکاسی کی جس کی وجہ سے ابتدا میں ہی اردو افسانہ عوامی مزاج سے آشنا ہوا۔گاؤں کی سادہ زندگی اور کھیت کھلیانوں کی بو باس کے ساتھ شہری مسائل کا عمیق مطالعہ و مشاہدہ ان کے افسانوں کا بنیادی موضوع ہے۔ دیہی اور شہری ماحول کی عکاسی، محنت کش کسانوں اور مزدوروں کی کسمپرسی حسینی کے افسانوں میں پوری طرح جلوہ گر ہے۔ زیر نظر کتاب "ہمارا گاؤں اور دوسرے افسانے" میں علی عباس حسینی کے دس افسانے شامل ہیں ۔ان تمام افسانوں میں دیہاتی زندگی کو موضوع بنایا گیا ہے۔
अली अब्बास हुसैनी अफ़्साना निगार, आलोचक और नाटककार के रूप में जाने जाते हैं। उनकी पैदाइश 03 फरवरी 1897 को मौज़ा पारा ज़िला ग़ाज़ीपुर में हुई। मिशन हाई स्कूल इलाहाबाद से मैट्रिक और इंटरमीडिएट किया। केनिंग कॉलेज लखनऊ से बी.ए. मुकम्मल करने के बाद इलाहाबाद यूनीवर्सिटी से इतिहास में एम.ए. किया। गर्वनमेंट जुबली कॉलेज लखनऊ में शिक्षा-दीक्षा से सम्बद्ध रहे। यहीं से 1954 में प्रिंसिपल के पद से सेवानिवृत हुए। 27 सितंबर 1969 को देहांत हुआ।
अली अब्बास हुसैनी को बचपन से ही क़िस्से-कहानियों में दिलचस्पी थी। दस-ग्यारह बरस की उम्र में अलिफ़ लैला के क़िस्से, फ़िरदौसी का शाह नामा, तिलिस्म होश-रुबा और उर्दू में लिखे जानेवाले दूसरे अफ़सानवी अदब का अध्ययन कर चुके थे। 1917 में पहला अफ़साना ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता के नाम से लिखा और 1920 में सर सय्यद अहमद पाशा के क़लमी नाम से पहला रुमानी नॉवेल ‘क़ाफ़ की परी’ लिखा। ‘शायद कि बहार आई’ उनका दूसरा और आख़िरी उपन्यास है। रफ़ीक़-ए-तन्हाई, बासी फूल, कांटों में फूल ,मेला घुमनी, नदिया किनारे, आई.सी.एस. और दूसरे अफ़साने, ये कुछ हंसी नहीं है, उलझे धागे, एक हमाम में, सैलाब की रातें, कहानियों के संग्रह प्रकाशित हुए।
‘एक ऐक्ट के ड्रामे’ उनके ड्रामों का संग्रह है। अली अब्बास हुसैनी की एक पहचान कथा-आलोचक के रूप में भी हुई। उन्होंने पहली बार नॉवेल की तन्क़ीद-ओ-तारीख़ पर एक ऐसी विस्तृत किताब लिखी जो आज तक कथा-आलोचना में एक संदर्भ के रूप में जानी जाती है। ‘अरूस-ए-अदब’ के नाम से उनके आलोचनात्मक आलेख का संग्रह प्रकाशित हुआ।
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