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लेखक : गोपी चंद नारंग

प्रकाशक : डायरेक्टर क़ौमी कौंसिल बरा-ए-फ़रोग़-ए-उर्दू ज़बान, नई दिल्ली

मूल : नई दिल्ली, भारत

प्रकाशन वर्ष : 2011

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : शोध एवं समीक्षा

उप श्रेणियां : मज़ामीन / लेख, इक़बालियात तन्क़ीद

पृष्ठ : 344

ISBN संख्यांक / ISSN संख्यांक : 978-81-7587-751-1

सहयोगी : गोपी चंद नारंग

इक़बाल जामिया के मुसन्निफ़ीन की नज़र में
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पुस्तक: परिचय

زیر نظر کتاب کے مرتب اردو کے نامور ناقد گوپی چند نارنگ ہیں۔ اس میں انہوں نے اقبال کو روایتی ڈھرے سے الگ سے صرف ان مشاہیر کی نظروں دیکھنے سے کی کوشش کی ہے جو جامعہ ملیہ اسلامیہ سے منسلک رہے ہیں۔ اس زاویے سے دیکھا جائے تو حیات اقبال کے دیگر زاویے بھی کھل کر سامنے آتے ہیں۔ مثلاً جامعہ اور اس کے ارباب حل و عقد کو اقبال سے اس درجہ عقیدت رہی ہے کہ ایک بار اقبال کو جامعہ کا شیخ الجامعہ بھی بننے کی پیشکش کی گئی تھی۔ حالانکہ جامعہ نے تحریک ترک موالات میں آنکھیں کھولی تھیں، اقبال جس کے حامی بھی نہیں تھے۔ اس کتاب میں اقبال کے حوالے سے ڈاکٹر ذاکر حسین، سید عابد حسین، پروفیسر محمد مجیب، خواجہ غلام السیدین، شمیم حنفی وغیرہ جیسی اہم شخصیات کے حوالے اقبال کو دیکھنے کی کوشش کی گئی ہے۔

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लेखक: परिचय

गोपी चंद नारंग उर्दू के एक बड़े आलोचक,विचारक और भाषाविद हैं। एक अदीब, नक़्क़ाद, स्कालर और प्रोफ़ेसर के रूप में वो हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों मुल्कों में समान रूप से लोकप्रिय हैं। गोपी चंद नारंग के नाम यह अनोखा रिकॉर्ड है कि उन्हें पाकिस्तान सरकार की तरफ़ से प्रसिद्ध नागरिक सम्मान सितारा ए इम्तियाज़ और भारत सरकार की ओर से पद्मभूषण और पद्मश्री जैसे प्रतिष्ठित नागरिक सम्मानों से नवाज़ा गया है। उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें और भी कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित किया गया है। जिनमें इटली का मिज़ीनी गोल्ड मेडल, शिकागो का अमीर खुसरो अवार्ड, ग़ालिब अवार्ड, कैनेडियन एकेडमी ऑफ उर्दू लैंग्वेज एंड लिटरेचर अवार्ड और यूरोपीय उर्दू राइटर्स अवार्ड शामिल हैं। वह साहित्य अकादेमी के प्रतिष्ठित पुरस्कार से भी सम्मानित थे तथा साहित्य अकादेमी के फ़ेलो थे।
नारंग ने उर्दू के अलावा हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में भी किताबें लिखी हैं। उनकी गिनती उर्दू के प्रबल समर्थकों में की जाती है। वो इस हक़ीक़त पर अफ़सोस करते हैं कि उर्दू ज़बान सियासत का शिकार रही है। उनका मानना है कि उर्दू की जड़ें हिंदुस्तान में हैं और हिंदी दर असल उर्दू ज़बान की बहन है।

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