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रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : शहरयार

संस्करण संख्या : 001

प्रकाशक : इंडियन बुक हाउस, अलीगढ़

प्रकाशन वर्ष : 1965

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : शाइरी

उप श्रेणियां : काव्य संग्रह

पृष्ठ : 111

सहयोगी : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द), देहली

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पुस्तक: परिचय

اردو شاعری کی مٹھاس کو عوام تک پہنچانے میں شہر یا ر کی خدمت بے مثال ہے ۔ انہوں نے بالی ووڈ فلموں کے ایسے ایسے کامیاب نغمے لکھے جن کاشمار ادب میں بھی ہوتاہے اور عوام میں بھی زبان زد ہے ۔ فلموں سے زیادہ ان کا ادبی دنیا سے گہرا تعلق تھا ، در س و تدریس سے لمبا رشتہ رہا اور علم وادب سے تا عمر شغف رہا ۔ آزادی کے بعد ار دو کی آواز میں جب تبد یلی آئی تو شہر یار کی کھنکتی ہوئی آواز سب سے تیز گونجی اور پینسٹھ کی دہائی میں ان کا یہ شعری مجموعہ منظر عام پر آیا۔ اس میں حقیقت نگاری کا عمدہ ترین معیار پیش کیا گیا ہے ۔ زندگی جن تضادات سے گزررہی تھی ان ہی کو مو ضوع بنا کر فکری آزا دی کے علم کو بلند رکھنے کی کوشش کی گئی ہے ۔ وہ اپنی شاعری میں افرا د اور معاشر ے دونوں کی خوبیوں اور خامیوں پر بیک وقت نگاہ ڈالتے ہیں ۔ بقول ڈاکٹر غلام شبیررانا ’’ان کی شاعری میں ہر لفظ گنجینہ معانی کا طلسم ہے ۔ ہر لحظہ نیاطور نئی بر ق تجلی کی کیفیت ہے جس کی چکاچوند سے قاری حیرت زدہ رہ جاتا ہے …ان کااسلوب ان کی ذات ہے جو کہ ان کی شاعری میں پوری آب و تاب کے ساتھ جلوہ گرہے ۔ ‘‘ ہندو ستان میں یہ اردو کے چوتھے ادیب ہیں جنہیں ہندوستان کا اعلی ادبی ایوارڈ ’’ گیان پیٹھ ‘‘ ان کے اسی شعری مجموعہ پر پیش کیا گیا ہے۔

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लेखक: परिचय

भारत के प्रमुख उर्दू कवियों और शिक्षाविदों में से एक "शहरयार" का असली नाम अख़लाक़ मोहम्मद खान था।  उनका जन्म 16 जून 1936 को उत्तर प्रदेश के बरेली ज़िले के अमला में हुआ था।  हरदोई में अपनी प्रार्थमिक शिक्षा पूरी करने के बाद, वे उच्च शिक्षा के लिए 1948 में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय चले गए। 1961 में अलीगढ से ही उर्दू में एम ए किया और 1966 में उर्दू विभाग अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय वाबस्ता हो गए। 1996 में यहीं से प्रोफेसर और उर्दू के अध्यक्ष के रूप में रिटायर हुए। 

 

ऐसे समय में जब उर्दू शायरी में उदासी और विडंबना जैसे विषयों पर बहुत ज़ोर था, शहरयार साहब ने अलग राह ली और उर्दू शायरी के भीतर आधुनिकता का एक नया अध्याय पेश किया। शहरयार ने अपनी शायरी में जिस सादगी के साथ आज के इंसान की तकलीफ़ और दुःख-दर्द का बयान किया है वो अपने आप में एक मिसाल है।  उन्होंने उर्दू शायरी के क्लासिकी रंग को बरक़रार रखते हुए जिस तरह आधुनिक वक़्त की समस्याओं का चित्रण अपनी शायरी में किया है वो क़ाबिल-ए-तारीफ़ है। अपनी साहित्यिक उपलब्धियों के अलावा, उन्हें गीतकार के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने 'उमराव जान' और 'गमन' जैसी मशहूर बॉलीवुड फिल्मों के लिए गाने भी लिखे हैं।

हाकी, बैडमिंटन और रमी जैसे खेलों में दिलचस्पी रखने वाले शहरयार उर्दू शायरी की तरफ़ मशहूर शायर खलील उर रहमान आज़मी से निकटता के बाद आए।  शुरूआती दौर में उनके कुछ कलाम  कुंवर अख़लाक़ मोहम्मद के नाम से भी प्रकाशित हुए।  लेकिन बाद में ख़लीलुर्रहमान आज़मी के कहने पर उन्होंने अपना तख़ल्लुस 'शहरयार' रख लिया था और आखिर तक इसी नाम से जाने जाते रहे। शहरयार अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द) अलीगढ़ में लिटरेरी सहायक भी रहे और अंजुमन की  पत्रिकाओं 'उर्दू आदब' और 'हमारी ज़बान' के संपादक के तौर पर भी काम किया।          

उनकी किताब 'ख्वाब के दर बंद हैं ' के लिए उन्हें साहित्य अकादमी अवार्ड से भी नवाज़ा गया। शहरयार साहब फ़िराक़ गोरखपुरी, कुर्रतुलऐन हैदर, और अली सरदार जाफरी के बाद चौथे ऐसे उर्दू साहित्यकार हैं जिन्हे ज्ञानपीठ सम्मान भी मिला।  उर्दू शायरी में अहम् भूमिका निभाने के लिए उन्हें और भी कई ख़िताब दिए गए हैं जिनमे उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार, फ़िराक़ सम्मान, और दिल्ली उर्दू पुरस्कार प्रमुख हैं।      

संग मील पब्लिकेशन्स  पाकिस्तान से उनका कुल्लियात प्रकाशित हुआ जिसमें उनके शायरी के छ: संग्रह शामिल हैं । यही कुल्लियात 'सूरज को निकलता देखूँ' के नाम से भारत से भी प्रकाशित हो चुका है। उनके कलाम का अनुवाद फ्रेंच, जर्मन, रूसी, मराठी, बंगाली और तेलगू में हो चुका है ।

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