aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
ایسی ہلکی پھلکی کتاب جو چھوٹے بچوں کے لئے لکھی گئی ہو اور بچے بھی اسے پسند کرنے لگیں بڑی بات ہے کیونکہ بچے کے ذہن کو سمجھنا آسان نہیں ۔ اس کے باوجود مصنف نے اس کتاب کے ذریعہ بچوں کے ذہن میں گھرکرلیا یعنی بچوں کے ذہن کو سمجھ لیا،قابل ستائش ہے۔ اس کتاب میں بچوں کی دلچسپ نظمیں تصاویر کے ساتھ دی گئی ہیں تاکہ بچے پڑھتے ہوئے فوٹو سے بھی لطف لیں۔ اس کتاب کی نظمیں گرچہ بچوں کے لئے ہیں مگر قافیے، وزن ، آہنگ اور الفاظ کی نزاکتوں پر بغیر مہارت کے یہ ممکن نہیں ہے اور اس کتاب کی نظموں میں یہ سب کچھ صاف طور پر نظر آ رہا ہے۔
ग़ुलाम मुस्तफ़ा सूफ़ी तबस्सुम की गिनती हल्क़ा-ए-अरबाब-ए-ज़ौक़ के प्रतिनिधि शाइरों में होती है. 4 अगस्त 1899 को अमृतसर में पैदा हुए. लाहौर के फ़ोरमेन क्रिस्चियन काॅलेज फ़ारसी साहित्य में एम.ए. किया और गवर्नमेंट कालेज लाहौर में शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएँ देने लगे. फ़ारसी विभाग के विभागाध्य्क्ष के पद से सेवानिवृत हुए.
सूफ़ी तबस्सुम उर्दू के साथ-साथ फ़ारसी में भी शाइरी करते थे. उन्होंने ग़ालिब और अमीर ख़ुसरौ की फ़ारसी शाइरी का उर्दू में अनुवाद भी किया. इसके अलावा उर्दू और फ़ारसी शाइरी के पंजाबी में भी बहुत से अनुवाद किए. सूफ़ी तबस्सुम को उनकी अदबी ख़िदमात के लिए 1944 में हुकूमत-ए-ईरान ने ‘तमग़ा-ए-निशान-ए-सिपास’ से नवाज़ा और हुकूमत-ए-पाकिस्तान ने ‘सितारा-ए-इम्तियाज़’ से नवाज़ कर इज़्ज़त बख़्शी.
1978 में सूफ़ी तबस्सुम का देहांत हुआ.
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