aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
بچوں کی کہانی لکھنا بچے کا کھیل نہیں ۔ جو مصنف بچوں کے دماغ میں گھس کر ان کی جیسی بات کرے اور اس بات کا لحاظ بھی رکھے کہ دماغ تعمیری سمت میں رواں ہو ، سب کے بس کی بات نہیں ۔ مگر ہمارے ادیبوں میں کچھ نے اس مشکل کام کو بھی بخوبی انجام دیا ہے۔ زیر نظر کتاب میں بچوں کی کہانیاں ہیں ۔البتہ ان کہانیوں میں کسی کسی مقام پر الفاظ کا انتخاب ذرا سخت کیا گیا ہے، مقصد ہے بچوں میں نئی سوچ اور نئی تلاش کی امنگ پیدا کرنا ۔ کتاب کی بیشتر کہانیاں قدیم مصنفوں کی ہیں۔ ان کہانیوں نے اپنے دور کے بچوں میں بڑی مقبولیت حاصل کی تھی، اسی تجربے کو مد نظر رکھتے ہوئے حالیہ دور کے بچوں کو کتاب کے ذریعہ کہانی سنائی جا رہی ہے۔ کہانی کا ماخذ کیا ہے اور اس کا اصل مصنف کون ہے، اسے کہانی کے ساتھ لکھ دیا گیا ہے۔ ان سبق آموز کہانیوں کو پڑھ کر بچے یقیناً اس سے خوب خوب استفادہ کریں گے۔ ٹائیٹل پر ایک ڈاکٹر، سپاہی اور رائٹر کی تصویر بچوں کے اذھان کو اپنی طرف مائل کرتی ہے۔
आनन्दी जैसी ख़ूबसूरत कहानी के लिए मशहूर ग़ुलाम अब्बास 17 नवंबर 1909 को अमृतसर में पैदा हुए। लाहौर से इंटर और उलूम-ए-मशरिक़िया की तालीम हासिल की। 1925 से लिखने का सफ़र शुरू किया। आरम्भ में बच्चों के लिए नज़्में और कहानियां लिखीं जो पुस्तकाकार में दारुल इशाअत पंजाब लाहौर से प्रकाशित हुईं और विदेशी अफ़्सानों के तर्जुमे उर्दू में किये। 1928 में इम्तियाज़ अली ताज के साथ उनके रिसाले फूल और तहज़ीब-ए-निसवां में सहायक सम्पादक के रूप में काम किया। 1938 में ऑल इंडिया रेडियो से सम्बद्ध हो गये। रेडियो के हिन्दी-उर्दू रिसाले ‘आवाज़’ और ‘सारंग’ उन्हीं के सम्पादन में प्रकाशित हुए। क़याम-ए-पाकिस्तान के बाद रेडियो पाकिस्तान से सम्बद्ध हो गये और रेडियो की पत्रिका ‘आहंग’ का सम्पादन किया। 1949 में कुछ वक़्त केन्द्रीय मंत्रिमंडल के सुचना एवं प्रसारण मंत्रालय से सम्बद्ध हो कर बतौर अस्सिटैंट डायरेक्टर पब्लिक रिलेशन्ज़ के अपनी सेवाएँ दीं। 1949 में ही बी.बी.सी लंदन से बतौर प्रोग्राम प्रोडयूसर वाबस्ता हुए। 1952 में वापस पाकिस्तान लौट आये और ‘आहंग’ के सम्पादक मंडल से समबद्ध हो गये। 1976 में सेवानिवृत हुए। 01 नवंबर 1982 को लाहौर में इंतिक़ाल हुआ।
ग़ुलाम अब्बास का नाम अफ़्साना निगार की हैसियत से अंजुमन तरक़्क़ी-पसंद मुसन्निफ़ीन की स्थापना से कुछ पहले अहमद अली, अली अब्बास हुसैनी, हिजाब इम्तियाज़ अली, रशीद जहां वग़ैरा के साथ सामने आया और बहुत जल्द वो अपने वक़्त में एक संजीदा और ग़ैरमामूली अफ़्साना निगार के तौर पर तस्लीम कर लिये गये। ग़ुलाम अब्बास ने अच्छाई और बुराई की पारंपरिक कल्पना से ऊपर उठकर इन्सानी ज़िंदगी की हक़ीक़तों की कहानियां लिखीं।उनका पहला कहानी संग्रह ‘आनंदी’ 1948 में मकतबा जदीद लाहौर से शाया हुआ और दूसरा संग्रह ‘जाड़े की चांदनी’ जुलाई 1960 में। तीसरा और आख़िरी मज्मुआ ‘कन-रस’ 1969 में लाहौर से प्रकाशित हुआ। इनके इलावा ‘गूंदनी वाला तकिया’ के नाम से उनका एक उपन्यास भी प्रकाशित हुआ।
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