aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
زیر تبصرہ کتاب "نکات مجنوں" مجنوں گورکھپوری کے تنقیدی مضامین کا مجموعہ ہے، کتاب کے شروع میں مقدمہ ہے، جس میں تخلیق و تنقید کے مزاج و مزاق پر گفتگو کی گئی ہے، نقاد کی صفات پر روشنی ڈالی گئی ہے۔ میں کیوں لکھتا ہوں ، اس سوال کا جواب بہت خوبصورت انداز میں دیا گیا ہے، میر کی شاعری اور شخصیت پر گفتگو کی گئی ہے، جس سے ان کے فن کی خوبیاں واضح ہوجاتی ہیں، قائم چاند پوری، مصحفی اور حضرت آسی کے فن پر وقیع گفتگو کی گئی ہے، ان کی شاعری کے موضوعات اور خصوصیات کو مدلل انداز میں پیش کیا گیا ہے، میر اثر کی مثنوی خواب و خیال اور نواب محبت خان کی مثنوی اسرار محبت کے محاسن پر گفتگو کی گئی ہے، مثنوی سحرالبیان کے ایک شعر کے حوالے سے گفتگو کرتے ہوئے مثنوی کی خوبیاں اور میر حسن کے فن کی بلندی کو واضح کیا گیا ہے، فراق، عبدالمالک آردی، نیاز فتح پوری، عالم فتح پوری سے مجنوں گورکھپوری کی خطوط کے ذریعے کی گئی گفتگو بھی کتاب میں شامل ہے، جو علمی و تنقیدی مضامین پر مشتمل ہے، تنقید کی خامیوں اور کوتاہیوں پر بھی مدلل انداز میں روشنی ڈالی گئی ہے۔
मजनूं गोरखपुरी उर्दू के प्रसिद्ध आलोचक, शायर, अनुवादक और कहानीकार हैं, उन्होंने प्रगतिवादी साहित्य को आलोचना के स्तर पर वैचारिक बुनियादें उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मजनूं का जन्म 10 मई 1904 को पिलवा उर्फ़ मुल्की जोत ज़िला बस्ती के एक ज़मींदार घराने में हुआ। मजनूं के पिता फ़ारूक़ दीवाना भी शायर थे और अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी में गणित के प्रोफ़ेसर थे। मजनूं की आरम्भिक शिक्षा मनझर गांव में हुई। आरम्भिक दिनों में ही अरबी, फ़ारसी और हिन्दी में दक्षता प्राप्त करली थी। दर्स-ए-निज़ामिया की शिक्षा पूरी करलेने के बाद बी.ए. तक की तालीम गोरखपुर, अलीगढ़ और इलाहाबाद में पूरी की। 1934 में आगरा यूनीवर्सिटी से अंग्रेज़ी में और 1935 में कलकत्ता यूनीवर्सिटी से उर्दू में एम.ए. किया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी में शिक्षा-दीक्षा से संबद्ध हो गये।
मजनूं की सम्पूर्ण पहचान पर उनकी तन्क़ीदी शनाख़्त हावी रही। उन्होंने निरंतर अपने अह्द के अदबी-ओ-तन्क़ीदी मसाइल पर लिखा। मजनूं की आलोचना की किताबों के नाम ये हैं; अदब और ज़िंदगी, दोश व फ़रदा, नकात-ए-मजनूं, शे’र व ग़ज़ल, ग़ज़ल-सरा, ग़ालिब शख़्स और शायर शोपनहार, तारीख़-ए-जमालियात, परदेसी के ख़ुतूत, नुक़ूश व अफ़कार। मजनूं के कहानियों के चार संग्रह भी प्रकाशित हुए; ख़्वाब व ख़्याल, समन पोश, नक़्श-ए-नाहीद, मजनूं के अफ़साने। उनके अफ़साने उस दौर के यादगार हैं जिसमें नस्र लतीफ़ मक़बूल हो रही थी और अकलियत पसंदी के बजाय रूमानियत और भावात्मकता सृजनात्मक साहित्य की मुख्य प्रेरणा थी। मजनूं ने ऑस्कर वाइल्ड, टाल्स्टाय और मिल्टन की कुछ रचनाओं का उर्दू में तर्जुमा भी किया। मजनूं की नज़र पश्चिमी साहित्य पर भी गहरी थी। 04 जून 1988 को कराची में देहांत हुआ।
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