aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
یہ کتاب علم نفوس پر ہے جس کے مؤلف مولوی عبد الباری آسی ہیں۔ یہ علم دنیا کی کئی تہذیبوں اور ثقافتوں میں مروج رہا ہے۔ لیکن اس کا ایک مخصوص طریقہ اہل ہنود میں بھی رہا ہے۔ جسے اکثر جوگی اور گیانی کیا کرتے ہیں۔ یہ اس کے آخری مراتب اور درجات سے کام لیتے ہیں اور اس کے ابتدائی مراحل کو عوام الناس کے کام آ سکتے ہیں انہیں بالکل چھوڑ دیتے ہیں۔ لیکن یہ کتاب ان تمام مراحل کو ایک ترتیب سے بیان کرتی ہے۔ ساتھ اس علم کے کچھ قواعد بھی دیے گئے ہیں۔ یہ ایسے قواعد و ضوابط ہیں جنہیں تارک الدنیا اور اہل دنیا دونوں برت سکتے ہیں۔ اس کتاب کا کمال یہ ہے کہ اس موضوع پر عموماً کتابیں بڑی مشکل سے ملتی ہیں لیکن مصنف نے ہوتی تندہی اور جانفشانی سے اس کام کو کیا ہے۔ خاص طور پر انہوں نے جو مقدمہ لکھا ہے وہ اس موضوع پر معلومات کا خزانہ ہے۔
अब्दुल बारीआसीकी शख़्सियतविभिन्न पहलुओं वाली थी। वो एक अच्छे शायर, क्लासिकी मुतून के व्याख्याकार, उपन्यासकार और अनुवादक थे। आसी का जन्म1893 को मेरठ में हुआ। उनके पिता शेख़ हसामुद्दीन मिर्ज़ा ग़ालिब के शागिर्द और एक अच्छे शायर थे। आसी ने अरबी-ओ-फ़ारसी की शिक्षा प्राप्त की और शाहजहाँ पुर के एक स्कूल में फ़ारसी के शिक्षक के तौर पर फ़राएज़ अंजाम दिए। कुछ वर्ष तक मोहम्मद अली जौहर के अख़्बार ‘हमदर्द’ में काम किया। उस के बाद वो लखनऊ में नवलकिशोर प्रकाशन से वाबस्ता हो गए।
घर और आस-पास के शेरी माहौल ने शुरुआत ही से आसी की तबीअत को शायरी की तरफ़ माइल कर दिया था। आग़ाज़-ए-शायरी में मौलाना सिराज अहमद सिराज से इस्लाह ली फिर नातिक़ गुलावठी की शागिर्दी इख़्तियार कर ली। कुछ ग़ज़लें दाग़ देहलवी को भी दिखाईं।
ग़ालिब और हाफ़िज़ के कलाम की व्याख्या अब्दुल बारी आसी के अहम तरीन इल्मी कामों में से है। उन्होंने शायरात का एक तज़किरा भी लिखा जो नवलकिशोर प्रकाशन से ‘तज़कीरा-तुल-ख़वातीन’ के नाम से प्रकाशित हुआ।
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