aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
मोहम्मद अल्वी 10 अप्रैल 1927 को अहमदाबाद (गुजरात) में पैदा हुए। 1937 में जामिया मिल्लिया इस्लमिया, देहली के बच्चों के स्कूल में दाख़िला लिया मगर पढ़ाई में जी नहीं लगा, पांचवीं कक्षा से आगे न पढ़ सके और वापस अहमदाबाद चले गए। लेकिन घर का माहौल साहित्यिक था और शाइ’री ख़ुद उनके ख़ून में दौड़ रही थी, इसलिए साहित्य पढ़ने का सिलसिला जारी रहा।उन्होंने बहुत से ऐतिहासिक उपन्यास पढ़े और कहानियाँ लिखने लगे। कुछ कहानियाँ कृष्ण चंदर को दिखाईं। 1947 से पहले के दिनों में अक्सर मुंबई पहुँच जाते थे जहाँ सआ’दत हसन मंटो से भी मिलना हुआ। प्रगतिशील आन्दोलन के असर में आए मगर उनका मन आधुनिकता की तरफ़ ज़ियादा था। 1947 में पहली ग़ज़ल लिखी जिससे उनकी, अपने ढंग की अनोखी शाइ’री, का सिलसिला चल निकला और उर्दू शाइ’री में एक नए अध्याय का इज़ाफ़ा हुआ। उनकी मौत 29 जनवरी 2018 को अहमदाबाद में हुई। अल्वी साहब का पहला कविता-संग्रह ‘ख़ाली मकान’ 1963 में सामने आया और फिर 1967 में ‘आख़िरी दिन की तलाश’, 1978 में ‘तीसरी किताब’, 1992 में ‘चौथा आस्मान’ का प्रकाशन हुआ। 1995 में उनका कविता-समग्र ‘रात इधर-उधर रौशन’ प्रकाशित हुआ।मोहम्मद अल्वी को 1992 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी साल गुजरात साहित्य अकादमी ने भी उन्हें सम्मान दिया।
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