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रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : सयय्द हैदर बख़्श हैदरी

संस्करण संख्या : 001

प्रकाशक : सय्यद इम्तियाज़ अली ताज

मूल : लाहौर, पाकिस्तान

प्रकाशन वर्ष : 1963

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : कि़स्सा / दास्तान, शिक्षाप्रद

उप श्रेणियां : दास्तान

पृष्ठ : 237

सहयोगी : ग़ालिब अकेडमी, देहली

tota kahani
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पुस्तक: परिचय

"طوطا کہانی" یہ کتاب مختلف کہانیوں کا ایک مجموعہ ہے، جس کی سب کہانیاں ایک طوطے کی زبانی بیان کی گئی ہیں۔ اس کتاب میں 35 کہانیاں ہیں۔ اس میں بتایا گیا ہے کہ ایک عورت اپنے شوہر کی عدم موجودگی میں اپنے محبوب سے ملنے جانا چاہتی ہے۔ طوطا ہر روز اس کو ایک کہانی سنانا شروع کر دیتا ہے اور ہر روز باتوں باتوں میں صبح کر دیتا ہے۔ اور وہ اپنے محبوب سے ملنے نہیں جا سکی، حتی کہ اس دوران اس کا شوہر آجاتا ہے۔ کتاب کے اسلوب میں سادگی کے ساتھ ساتھ حیدری نے عبارت کو رنگین بنانے کے لیے قافیہ پیمائی سے بھی کام لیا ہے۔ اس کے علاوہ موقع اور محل کے مطابق اشعار کا بھی استعمال کیا ہے۔زیر نظر نسخہ کو کارکنان مجلس ترقی ادب لاہور نے بہت ہی اہتمام سے مرتب کیا ہے، جس میں محمد اسماعیل پانی پتی اور وحید قریشی کا بیش قیمت مقدمہ ہے جس میں طوطا کہانی کے سنسکرت سے فارسی اور اردو کی طرف آمد کا تحقیقی ذکر ہے۔ نیز مختلف طوطا کہانیوں پر روشنی ڈالی گئی ہے۔

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लेखक: परिचय

हैदरी फोर्ट विलियम कॉलेज के लेखकों में सबसे ज़्यादा किताबों के लेखक व अनुवादक हैं। गद्यकार होने के साथ साथ वो शायर भी हैं लेकिन उनकी शोहरत गद्य लेखन पर ही आधारित है।

उनका नाम हैदर बख़्श और तख़ल्लुस हैदरी है। सय्यद अबुलहसन के बेटे थे और दिल्ली के रहने वाले थे। हैदर बख़्श ने अभी बचपन से आगे क़दम नहीं रखा था कि उनके वालिद को ऐसी आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ा कि मजबूरन दिल्ली छोड़कर सपरिवार बनारस चले गए। यहाँ नवाब इब्राहीम ख़ां नाज़िम अदालत थे। वो इस परिवार की मदद के लिए राज़ी हुए। उन्होंने ही हैदर बख़्श की शिक्षा का बंदोबस्त कर दिया। बनारस के मशहूर मदरसों में उन्होंने प्रचलित शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा प्राप्ति के बाद दफ़्तर अदालत के दफ़्तर में मुलाज़िम हो गए।

नौकरी के साथ साथ अध्ययन और लिखना व रचना करना जारी रखा। हैदरी ने क़िस्सा मेहर-ओ -माह के नाम से एक कहानी लिखी और अठारहवीं सदी के आख़िर में उसे लेकर कलकत्ता चले गए। वहाँ गिलक्रिस्ट की सेवा में उपस्थित हुए और अपनी किताब पेश की जिसे उन्होंने बहुत पसंद किया और मुंशी की हैसियत से हैदरी को कॉलेज के कर्मचारियों में सम्मिलित कर लिया। वहाँ रह कर उन्होंने बहुत सी किताबें लिखीं और अनुवाद किए। अंततः नौकरी से सेवानिवृत हो कर बनारस वापस चले गए। वहाँ 1823ई. में देहांत हुआ।

शायरी के अलावा उन्होंने जो किताबें लिखीं उनमें से अहम हैं, “किस्सा-ए-महर-ओ-माह”, “लैला मजनूं”, “हफ्त पैकर”, “तारीख़ नादिरी”, “गुलशन-ए-हिंद”, “तोता कहानी”, “आराइश-ए-महफ़िल” और “गुल-ए-मग़फ़िरत।” इनमें से आख़िरी तीन किताबों ने बहुत प्रसिद्धि पाई।

“तोता कहानी” सय्यद मुहम्मद क़ादरी की एक फ़ारसी किताब का अनुवाद है। संस्कृत की एक पुरानी किताब का मौलाना ज़ियाउद्दीन बख़्शी ने फ़ारसी में अनुवाद किया। क़ादरी ने इसे सारांशित किया। इस सारांश को हैदरी ने उर्दू का रूप दे दिया। यह किताब बहुत लोकप्रिय हुई और विभिन्न भाषाओँ में इसके अनुवाद हुए।

“आराइश-ए-महफ़िल” हातिमताई के फ़ारसी क़िस्से का अनुवाद और सारांश है। मुल्ला हुसैन वाइज़ काशफ़ी की किताब रौज़ा-उल-शहदा का एक अनुवाद तो फ़ज़ली ने “कर्बल कथा” के नाम से किया था। दूसरा अनुवाद और सारांश हैदरी की “आराइश-ए-महफ़िल” है। मीर अमन का रुजहान बोल-चाल की ज़बान और हिन्दी की तरफ़ ज़्यादा है। इसके विपरीत हैदरी का झुकाव फ़ारसी की तरफ़ है।

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