aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
زیر نظر کتاب میں مسعود حسین خاں کے ان صحافتی مضامین کا مجموعہ ہے جو انھوں نے"ہماری زبان " (علی گڑھ) کے اداریوں اور انشائیوں کی شکل میں مختلف اوقات میں لکھے تھے ۔انھوں نےاس کتاب میں اپنے صوتی طرز کو جے آرفرتھ کے نظریات کی روشنی میں پیش کیا ہے ، جو مشرقی زبانوں سے گہرا لگاؤ رکھتا تھا ، انھوں نےلفظ کی تعریف ، حد بندی ، صوت ، رکن کی صوتیاتی اور تجرباتی ساخت کا مطالعہ لفظوں میں معکوسیت سے بحث کرتے ہوئے کمیت کی عروضیات کا باریک بینی سے مطالعہ کیا ہے ،اس کتاب کا ہر مضمون فکر انگیز ، مسائل وتجربہ سے بھر پور ہے ۔
प्रमुख शोधकर्ता, प्रसिद्ध आलोचक और प्रसिद्ध भाषाविद प्रोफ़ेसर मसऊद हुसैन ख़ां ने उर्दू भाषा व साहित्य के लिए अमूल्य सेवाएं प्रदान की हैं। शे’र व साहित्य की दुनिया में उनकी उपलब्धियां अविस्मरणीय हैं।
मसऊद हुसैन ख़ां, वतन क़ायमगंज (उत्तरप्रदेश) मैं पैदा हुए और ढाका (बंगला देश) में आरंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी से एम.ए और पी.एचडी. की उपाधियाँ प्राप्त कीं। आगे की शिक्षा के लिए यूरोप गए और पेरिस यूनीवर्सिटी से भाषाविज्ञान में डी.लिट की डिग्री प्राप्त की। हिंदुस्तान वापस आकर ऑल इंडिया रेडियो से नौकरी के सिलसिले में सम्बद्ध हो गए। लेकिन ये उनका पसंदीदा शुग़ल नहीं था। असल दिलचस्पी अध्यापन में थी। रेडियो की नौकरी से निवृत हो कर अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी के उर्दू विभाग में लेक्चरर हो गए। कुछ समय बाद उस्मानिया यूनीवर्सिटी के उर्दू विभाग में प्रोफ़ेसर हो कर हैदराबाद चले गए। फिर अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी के भाषाविज्ञान विभाग में पहले प्रोफ़ेसर व विभागाध्यक्ष का पद ग्रहण किया। यूनीवर्सिटी आफ़ कैलिफोर्निया (अमरीका) और कश्मीर यूनीवर्सिटी श्रीनगर में विजिटिंग प्रोफ़ेसर भी रहे। सन्1973 में जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली के वाइस चांसलर नियुक्त हुए। वहाँ से सेवानिवृत्त होने के बाद जामिया उर्दू अलीगढ़ के मानद कुलपति और अलीगढ़ यूनीवर्सिटी के भाषाविज्ञान विभाग के प्रोफ़ेसर एमेरिटस के पदों पर आसीन हुए और अलीगढ़ में निवास किया और लेखन व संकलन में व्यस्त हो गए। उनकी विद्वतापूर्ण साहित्यिक सेवाओं के सम्मान में उन्हें सन् 1984 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
मसऊद हुसैन ख़ां शायर भी हैं। “रूप बंगाल” और “दो नीम” उनके काव्य संग्रह हैं। “रूप बंगाल” का हिन्दी में अनुवाद भी हो चुका है। बिकट कहानी, आशूरा नामा और मसनवी कदम राव पदम राव वैज्ञानिक सिद्धांतों पर संकलित करके उन्होंने उल्लेखनीय सेवा प्रदान की।
हैदराबाद प्रवास के दौरान “क़दीम उर्दू” नाम से उन्होंने एक शोध पत्रिका जारी किया था जिसका उद्देश्य आधुनिक सिद्धांतों पर आधारित प्राचीन ग्रंथों को प्रकाशित करना था। एक शब्दकोश की तैयारी का काम भी उन्होंने अंजाम दिया। “इक़बाल की नज़री-ओ-अमली शे’रियात” में इक़बाल की शायरी का अध्ययन भाषाविज्ञान की रोशनी में किया गया है। शे’र-ओ-ज़बान, उर्दू ज़बान-ओ-अदब और उर्दू का अलमिया लेखों के संग्रह हैं। भाषाविज्ञान को यहाँ भी केन्द्रीय हैसियत प्राप्त है। “मुक़द्दमा तारीख़-ए-ज़बान उर्दू” उनकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इसमें उर्दू की उत्पत्ति और विकास के मुद्दे पर तार्किक बहस की गई है।
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
Get Tickets