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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : गोपी चंद नारंग

प्रकाशक : यूनियन प्रिंटिंग प्रेस, दिल्ली

प्रकाशन वर्ष : 1961

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : भाषा एवं साहित्य, भाषा विज्ञान

उप श्रेणियां : भाषा

पृष्ठ : 48

सहयोगी : विकास गुप्ता

urdu ki taleem ke lisaniyati pahlu
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पुस्तक: परिचय

لسانیات کی ایک اہم شاخ صوتیات ہے۔جس کے تحت کسی بھی زبان کا صوتی و لسانی جائزہ لیا جاتا ہے۔بقول گوپی چند نارنگ" اہل علم و ادب ،اکثر اساتذہ و طلبہ کو لسانیات تو درکنار ،صوتیات کے بنیادی اصولوں تک سے واقفیت نہیں ہوتی۔پچھلے دو تین برسوں میں دہلی یونی ورسٹی میں امریکی ،روسی اور ایرانی طلبا کو اردو پڑھانے کا اتفاق ہوا اور یہ بات بار بار محسوس کی گئی کہ جب تک صوتیات سے مدد نہ لی جائے،ابتدائی کام کی بنیاد مضبوط رکھی ہی نہیں جاسکتی۔"اسی ضرورتوں کے پیش نظر اس مختصرکتاب میں پروفیسر گوپی چند نارنگ نے اس موضوع سے متعلق اہم مواد فراہم کیا ہے۔جس میں انھوں نے تعلیم زبان کی نوعیت سے بحث کرنے کے بعد صوتیات اور استعمال اصوات کے اصول بیان کیےہیں۔مثالوں اور نقشوں کے ذریعے اردو آوازوں کے فرق اوران کے مخارج کی وضاحت بھی کردی گئی ہے۔کتاب میں ان اصطلاحوں کو درج کیا گیا ہے جو اردو میں کچھ کچھ رواج پاچکی ہیں یا عام فہم ہیں۔اس کے ساتھ ان اصطلاحوں کے انگریزی مترادفات بھی ساتھ ساتھ درج کردئیے گئے ہیں۔

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लेखक: परिचय

गोपी चंद नारंग उर्दू के एक बड़े आलोचक,विचारक और भाषाविद हैं। एक अदीब, नक़्क़ाद, स्कालर और प्रोफ़ेसर के रूप में वो हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों मुल्कों में समान रूप से लोकप्रिय हैं। गोपी चंद नारंग के नाम यह अनोखा रिकॉर्ड है कि उन्हें पाकिस्तान सरकार की तरफ़ से प्रसिद्ध नागरिक सम्मान सितारा ए इम्तियाज़ और भारत सरकार की ओर से पद्मभूषण और पद्मश्री जैसे प्रतिष्ठित नागरिक सम्मानों से नवाज़ा गया है। उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें और भी कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित किया गया है। जिनमें इटली का मिज़ीनी गोल्ड मेडल, शिकागो का अमीर खुसरो अवार्ड, ग़ालिब अवार्ड, कैनेडियन एकेडमी ऑफ उर्दू लैंग्वेज एंड लिटरेचर अवार्ड और यूरोपीय उर्दू राइटर्स अवार्ड शामिल हैं। वह साहित्य अकादेमी के प्रतिष्ठित पुरस्कार से भी सम्मानित थे तथा साहित्य अकादेमी के फ़ेलो थे।
नारंग ने उर्दू के अलावा हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में भी किताबें लिखी हैं। उनकी गिनती उर्दू के प्रबल समर्थकों में की जाती है। वो इस हक़ीक़त पर अफ़सोस करते हैं कि उर्दू ज़बान सियासत का शिकार रही है। उनका मानना है कि उर्दू की जड़ें हिंदुस्तान में हैं और हिंदी दर असल उर्दू ज़बान की बहन है।

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