आई है फिर बहार क्या कहना
आई है फिर बहार क्या कहना
चश्म हैं अश्क-बार क्या कहना
मिस्ल-ए-सीमाब मुज़्तरिब क्यों है
ऐ दिल-ए-बे-क़रार क्या कहना
अब न जाएँगे ग़ैर के दर पर
कह दिया एक बार क्या कहना
क़ब्र में भी खुली रहीं आँखें
वाह रे इंतिज़ार क्या कहना
डर न तू साथ मेरे चल ज़ाहिद
साक़ी अपना है यार क्या कहना
पहली मंज़िल पे थक के बैठ गए
वाए बर-जान-ए-ज़ार क्या कहना
ना'त-ए-अहमद से है 'क़मर' शोहरत
ऐसी शोहरत की यार क्या कहना
अर्सा-ए-काएनात मौज-ए-सराब
दीदा-ए-तिश्ना-कार क्या कहना
एक ही वार में उतारा सर
तेग़-ए-क़ातिल की धार क्या कहना
मेरे ख़्वाजा हसन निज़ामी का
दिल-ए-आईना-दार क्या कहना
उन तबीबों से हूँ मैं बे-परवा
शौक़-ए-दीदार-ए-यार क्या कहना
पूछता क्या है हाल-ए-महजूरी
मैं हूँ बिस्तर का तार क्या कहना
उस हिना-बस्ता-पा-ए-रंगीं का
ऐ दिल-ए-ख़ूँ-फ़िशार क्या कहना
शुक्र ऐ मौसम-ए-बहार-ए-जुनूँ
जामा-ए-तार-तार क्या कहना
हम से दूरी है ग़ैर से क़ुर्बत
नहनु-अक़रब-निगार क्या कहना
बुलबुल-ए-बोस्तान-ए-अहमद हूँ
नग़्मा-ए-सद-हज़ार क्या कहना
हाँ मदीना है रश्क-ए-ख़ुल्द-ए-बरीं
उस चमन की बहार क्या कहना
दिल असीरी से पेच-ओ-ताब में है
गेसू-ए-पेचदार क्या कहना
दुर-ए-दंदाँ की गर्मी-ओ-ताबिश
ऐ दुर-ए-आब्दार क्या कहना
मुझे सौदा है मैं परेशाँ हूँ
ज़ुल्फ़ का इंतिशार क्या कहना
फ़ित्ना-पर्दाज़-ओ-तफ़रक़ा-अंदाज़
फ़लक-ए-बे-वक़ार क्या कहना
मिस्ल-ए-परवाना तुम पे मरता है
'क़मर'-ए-जाँ-निसार क्या कहना
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