आइने से बात करना इतना आसाँ भी नहीं
आइने से बात करना इतना आसाँ भी नहीं
अक्स की तह से उभरना इतना आसाँ भी नहीं
ख़्वाहिशें सीने में उग आती हैं जंगल की तरह
ज़िंदगी बाँहों में भरना इतना आसाँ भी नहीं
अपने ही क़दमों की आहट जिस जगह चुभने लगे
ऐसी राहों से गुज़रना इतना आसाँ भी नहीं
जानती हूँ मैं जुदा है मेरे ख़्वाबों का मिज़ाज
इन उजालों में सँवरना इतना आसाँ भी नहीं
साथ रहता है हमेशा तेरा ग़म तेरा ख़याल
अब हुआ मालूम मरना इतना आसाँ भी नहीं
कैसी कैसी ऊँची दीवारें खड़ी हैं हर तरफ़
दिल में जो है कर गुज़रना इतना आसाँ भी नहीं
रख दिया है आप की चाहत ने मुझ को जिस जगह
इस बुलंदी से उतरना इतना आसाँ भी नहीं
सोचना पड़ता है तन्हाई में ख़ुद को बारहा
अपने ही सच से मुकरना इतना आसाँ भी नहीं
जाने 'ऊषा' कितने बंधन कितने रिश्ते तोड़ कर
दिल की ख़ाली गोद भरना इतना आसाँ भी नहीं
- पुस्तक : Sada-e-ehsaas (पृष्ठ 24)
- रचनाकार : Usha Bhadoriya
- प्रकाशन : C/o Lt. CI. S. Bhadoria, MG& G Area Provost Unil Homi, Bhabha Road, Colaba Military Station, Near Navy Nagar, Colaba Mumbai-100005 (2016)
- संस्करण : 2016
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