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आज फिर दर्द जिगर से गुज़रा

नरेश शांडिल्य

आज फिर दर्द जिगर से गुज़रा

नरेश शांडिल्य

MORE BYनरेश शांडिल्य

    आज फिर दर्द जिगर से गुज़रा

    एक सागर ज्यूँ भँवर से गुज़रा

    तर-ब-तर याद लिए इक बादल

    डबडबाया सा नज़र से गुज़रा

    दर पे उन के भी पड़ी थी साँकल

    आज कैसा मैं उधर से गुज़रा

    गुम-शुदा गाँव लिए ख़्वाबों में

    मैं हक़ीक़त के नगर से गुज़रा

    एक चर्चा थी मेरी बर्बादी

    आज जब जब मैं जिधर से गुज़रा

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