आँख डाले न फ़लक से मह-ए-ताबाँ मुँह पर
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आँख डाले न फ़लक से मह-ए-ताबाँ मुँह पर
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
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आँख डाले न फ़लक से मह-ए-ताबाँ मुँह पर
रख लो फूलों के एवज़ ज़ुल्फ़ का दामाँ मुँह पर
नाज़ से आप जो चुन लें कहीं अफ़्शाँ मुँह पर
साफ़ रौशन नज़र आ जाएँ चराग़ाँ मुँह पर
आज गेसू नहीं लहराते हैं ऐ जाँ मुँह पर
तुम ने बिठलाए हैं ये अफ़ई-ए-पेचाँ मुँह पर
पीठ पीछे मिरे हक़ में तो हैं कड़वे कलिमे
मीठी बातें न करो ऐ शह-ए-ख़ूबाँ मुँह पर
दस्त-ए-जानाँ की अदाएँ जो करे दस्त-ए-जुनूँ
नोच कर फेंक दे दामान-ओ-गिरेबाँ मुँह पर
साया-ए-ज़ुल्फ़ नहीं यार रुख़-ए-रौशन पर
सुब्ह राहत की है शाम-ए-ग़म-ए-हिज्राँ मुँह पर
ज़िक्र जो आप के पीछे है वही आगे है
झूट कहते नहीं हरगिज़ कभी इंसाँ मुँह पर
ग़ाएबाना जो कोई बे-अदबी हो मुझ से
कीजिएगा न बयाँ उस का मिरी जाँ मुँह पर
सच न समझो उसे जो तुम को कोई झूट कहे
ख़ाक पड़ती नहीं महताब के ऐ जाँ मुँह पर
सच ना समझो उसे जो तुम को कोई झूट कहे
ख़ाक पड़ती नहीं महताब के ऐ जाँ मुँह पर
गंज से मार की होती है हमेशा उल्फ़त
क्या हुआ आ गई गर ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ मुँह पर
आबरू मेरी बढ़े ग़ैर हों पानी-पानी
आब-ए-ख़ंजर जो पड़े ऐ दिल-ए-नादाँ मुँह पर
सुर्ख़-रूई की तमन्ना में हमेशा क़ातिल
तेग़ मलती है तिरी ख़ून-ए-शहीदाँ मुँह पर
बोसा-ए-रू-ए-मुनव्वर की हवस बे-जा है
मार बैठें न कहीं गेसू-ए-पेचाँ मुँह पर
सहर-ए-वस्ल का कुछ कीजिए मुझ से वा'दा
है उदासी की तरह शाम-ए-ग़रीबाँ मुँह पर
सुर्ख़-रू गर्दन-ए-बिस्मिल की तरह हो जाऊँ
दे कोई ज़ख़्म अगर ख़ंजर-ए-बुर्रां मुँह पर
क्यों न हो जुम्बिश-ए-अबरू में अजल आशिक़ की
मह-जबीं रखती हैं शमशीर को उर्यां मुँह पर
चश्म पैदा तो करे जोश-ए-असर नैसाँ का
हम भी ले लेंगे कभी गौहर-ए-ग़लताँ मुँह पर
हूँ वो बुलबुल मैं 'शगुफ़्ता' चमन-ए-आलम में
मुँह की खाए जो चढ़े मुर्ग़-ए-गज़ल-ख़्वाँ मुँह पर
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