आँखों में हया आ जाती है होंटों पे तबस्सुम लाते हैं
आँखों में हया आ जाती है होंटों पे तबस्सुम लाते हैं
वो मुझ पे सितम जब करते हैं तस्वीर-ए-करम बन जाते हैं
अब आप इनायत करने की तकलीफ़ ही क्यूँ फ़रमाते हैं
दिन यूँ भी गुज़रने ही ठहरे दिन यूँ भी गुज़र ही जाते हैं
अल्लाह रे ख़स-ओ-ख़ाशाक से ये हँस हँस के चटानों का कहना
वो तूफ़ाँ को क्या समझेंगे जो तूफ़ाँ में बह जाते हैं
इक सम्त मुसलसल उम्मीदें इक सम्त मुसलसल महरूमी
कब तक ये उठे बार-ए-हस्ती शाने हैं कि टूटे जाते हैं
अब ऐसी करम की बातों से दबती हैं कहीं दिल की चोटें
तुम जितना मिटाते जाते हो ये नक़्श उभरते आते हैं
इस दौर-ए-परेशानी में कभी वो वक़्त भी आता है 'आली'
कुछ दिल भी धोके खाता है कुछ वो भी करम फ़रमाते हैं
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