आप की शोख़ी-ए-इंकार नई बात नहीं
आप की शोख़ी-ए-इंकार नई बात नहीं
ये तो मा'मूल है सरकार नई बात नहीं
आप को ख़ून-ए-तमन्ना पे त'अज्जुब क्यूँ है
रोज़ मर जाते हैं बीमार नई बात नहीं
चोट पड़ती नहीं एहसास पे अब मुद्दत से
आप की तल्ख़ी-ए-गुफ़्तार नई बात नहीं
हुस्न-ए-इख़्लास के बदले में जुनूँ मिलता है
'आम है शामत-ए-किरदार नई बात नहीं
पुर्सिश-ए-हाल के बा'द उन को तरद्दुद कैसा
कह चुके हम तो कई बार नई बात नहीं
- पुस्तक : Khamyazah (पृष्ठ 137)
- रचनाकार : Sayed Mazhar gilani
- प्रकाशन : Sayed Suhail wajid Fauq (1978)
- संस्करण : 1978
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