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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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आज़ुर्दा निगाहों पे ये मंज़र नहीं उतरा

अज़हर हाश्मी सबक़त

आज़ुर्दा निगाहों पे ये मंज़र नहीं उतरा

अज़हर हाश्मी सबक़त

MORE BYअज़हर हाश्मी सबक़त

    आज़ुर्दा निगाहों पे ये मंज़र नहीं उतरा

    सहरा-ए-तसव्वुर में कोई घर नहीं उतरा

    जब मिल गया इरफ़ान-ए-नज़र मुझ को ख़ुदा से

    फिर क्यूँ मिरे एहसास से महशर नहीं उतरा

    देखा नहीं जिस ने मिरे तूफ़ाँ को सुकूँ में

    वो शख़्स मिरी रूह के अंदर नहीं उतरा

    ज़ालिम तो बहुत हैं मगर अब उन को मिटाने

    फिर कोई अबाबील का लश्कर नहीं उतरा

    इस मसनद-ए-ख़ाकी पे मैं बैठा हूँ जहाँ पर

    कोई भी महल-साज़ बराबर नहीं उतरा

    तन्हाई जहाँ भी मिली आदाब किया है

    हक़-तलफ़ी पे उस की मिरा पैकर नहीं उतरा

    समझौते बुलाते रहे दे कर मुझे गौहर

    ईमाँ के ज़ियाँ में मगर 'अज़हर' नहीं उतरा

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