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ऐ यास मिरा घर तिरा मस्कन तो नहीं है

अर्श मलसियानी

ऐ यास मिरा घर तिरा मस्कन तो नहीं है

अर्श मलसियानी

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    यास मिरा घर तिरा मस्कन तो नहीं है

    दिल है ये तमन्नाओं का मदफ़न तो नहीं है

    क्या बात है गुलज़ार है क्यूँ बर्क़ से महफ़ूज़

    बे-बर्ग मिरी शाख़-ए-नशेमन तो नहीं है

    हाँ दीदा-ए-तहक़ीक़ से ज़ौक़-ए-सफ़र देख

    रहबर जिसे समझा है वो रहज़न तो नहीं है

    तकलीफ़ असीरी की शिकायत कर दिल

    ये कुंज-ए-क़फ़स कुंज-ए-नशेमन तो नहीं है

    आओ कि तमन्नाओं में है ताब-ए-नज़ारा

    ये दिल है मिरा वादी-ए-ऐमन तो नहीं है

    छू कर ही जिसे आतिश-ए-दोज़ख़ हुई ठंडी

    दामन ये किसी रिंद का दामन तो नहीं है

    मंज़ूर है कुछ जाँच तिरे अज़्म की उस को

    दर-अस्ल ज़माना तिरा दुश्मन तो नहीं है

    बे-सई-ए-अमल ख़ाक है इंसान को जीना

    ये रज़्म-ए-गह-ए-ज़ीस्त है मदफ़न तो नहीं है

    सय्याद इजाज़त कि ज़रा देख तो आऊँ

    जलता है जो वो मेरा नशेमन तो नहीं है

    देखो तो रहा दश्त-नवर्दी पे जो नाज़ाँ

    वो 'अर्श' रवाँ जानिब-ए-गुलशन तो नहीं है

    स्रोत :
    • पुस्तक : Kulliyat-e-Arsh (पृष्ठ 59)
    • रचनाकार : Arsh Malsiyani
    • प्रकाशन : Ali Imran Chaudhary

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