अक्स-ए-उम्मीद को हम शम-ए-फ़रोज़ाँ समझे
अक्स-ए-उम्मीद को हम शम-ए-फ़रोज़ाँ समझे
गर्दिश-ए-बर्क़-ओ-शरर रक़्स-ए-बहाराँ समझे
उस की क़िस्मत में कहाँ हुस्न-ए-बहाराँ देखे
घर को सहरा जो गुलिस्ताँ को बयाबाँ समझे
आस की एक किरन भी नहीं ता-हद्द-ए-नज़र
ये वही है जिसे हम सुब्ह-ए-बहाराँ समझे
हम सफ़-ए-गूंचा-ओ-गुल मौज-ए-मह-ओ-अंजुम को
हल्क़ा-ए-माहवशाँ बज़्म-ए-निगाराँ समझे
कू-ए-पिंदार में ये बारिश-ए-संग-ए-दुश्नाम
बज़ला-संजी सही हम शेवा-ए-याराँ समझे
लम्हा-ए-ज़ीस्त इज़ाफ़ी था कभी आया ख़याल
सर्वत-ए-दिल जिसे सरमाया-ए-अरमाँ समझे
अपने सीने में लिए सैल-ए-हवादिस था 'ज़ुबैर'
जिस को अरबाब-ए-नज़र अब्र-ए-बहाराँ समझे
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