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अपने माज़ी को चराग़ों में बसर हम ने किया

मोईद रहबर लखनवी

अपने माज़ी को चराग़ों में बसर हम ने किया

मोईद रहबर लखनवी

MORE BYमोईद रहबर लखनवी

    अपने माज़ी को चराग़ों में बसर हम ने किया

    कट गई रात तो दीदार-ए-सहर हम ने किया

    सिर्फ़ जंगें ही नहीं जीती हैं हैं इस दुनिया में

    मा'रका इश्क़ के मैदाँ का भी सर हम ने किया

    देखने वालों की हैरत का ठिकाना रहा

    एक पत्थर को जो चमका के गुहर हम ने किया

    चाँद में अक्स नज़र आया है तेरा जब से

    हुस्न वाले तुझे मंज़ूर-ए-नज़र हम ने किया

    कौन सच बोलता है ज़ालिम-ओ-जाबिर के ख़िलाफ़

    काम दुनिया में ये बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर हम ने किया

    भूल पाना उसे आसाँ तो नहीं था यारो

    काम ये थोड़ा सा मुश्किल था मगर हम ने किया

    तब कहीं जा के ग़ज़ल रंग है लाई 'रहबर'

    सिर्फ़ अशआर में जब ख़ून-ए-जिगर हम ने किया

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