बरमला हुस्न-ए-दिल-आवेज़ का क़िस्सा न सुना
बरमला हुस्न-ए-दिल-आवेज़ का क़िस्सा न सुना
सय्यद नवाब हैदर नक़वी राही
MORE BYसय्यद नवाब हैदर नक़वी राही
बरमला हुस्न-ए-दिल-आवेज़ का क़िस्सा न सुना
चाक-ए-दामन न दिखा 'उज़्र-ए-ज़ुलेख़ा न सुना
काबिल-ए-ज़िक्र मोहब्बत के बहुत से रुख़ हैं
कार-ए-वहशत के सिवा और कोई अफ़्साना सुना
वक़्त तेज़ी से गुज़रता है पर ऐसा भी भी नहीं
आज कहता है बहुत क़िस्सा-ए-फ़र्दा न सुना
आइना-रू कोई ता'बीर ज़रा दिखला दे
ताकि पहचान लूँ उस को जिसे देखा न सुना
कब से हूँ गोश-बर-आवाज़ तिरी महफ़िल में
यार दिलदार बस अब शिकवा-ए-बेजा न सुना
कल तलक शोर-ए-अनादिल था चमन में वाँ आज
इक क़यामत से कोई दिल भी धड़कता न सुना
किसी जानिब से चले 'राही' हवा-ए-नमनाक
चारागर ज़िक्र-ए-तुनुक-आबी-ए-दरिया न सुना
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