बज़्म-ए-हस्ती को ब-सद-हसरत-ए-ता'मीर न देख
बज़्म-ए-हस्ती को ब-सद-हसरत-ए-ता'मीर न देख
शम्अ' से रब्त बढ़ा शम्अ' की तनवीर न देख
सोज़-ए-फ़ितरत कहीं काग़ज़ पे उतर सकता है
मेरा दिल देखने वाले मिरी तस्वीर न देख
तेरी शर्मिंदा-निगाही की क़सम है तुझ को
किस के सीने में उतरती है ये शमशीर न देख
तोड़ सकता है तिलिस्म-ए-सहर-ओ-शाम जुनूँ
तौक़-ए-गर्दन पे न जा पाँव की ज़ंजीर न देख
बारे काम आ तो गया ख़ून-ए-तमन्ना ऐ दोस्त
मिरा अफ़्साना मिरी शोख़ी-ए-तहरीर न देख
छोड़ जाना है तुझे नक़्श चमन में अपना
फ़िक्र-ए-अंजाम न कर हासिल-ए-तदबीर न देख
तुझ को फ़ितरत के तक़ाज़ों की ख़बर क्या ज़ाहिद
देख रहमत की निगाहें मिरी तक़्सीर न देख
दिल की हर लग़्ज़िश-ए-मासूम पे सौ ख़ुल्द निसार
मस्ती-ए-जुर्म समझ शोरिश-ए-ता'ज़ीर न देख
देख उस को कि जिए जाता है हँस हँस के 'अदीब'
मुझ से पेश आती है क्यूँकर मिरी तक़दीर न देख
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