बे-चेहरगी-ए-उम्र-ए-ख़जालत भी बहुत है
बे-चेहरगी-ए-उम्र-ए-ख़जालत भी बहुत है
इस दश्त में गिर्दाब की सूरत भी बहुत है
आँखें जो लिए फिरता हूँ ऐ ख़्वाब-ए-मुसलसल!
मेरे लिए ये कार-ए-अज़िय्यत भी बहुत है
तुम ज़ाद-ए-सफ़र इतना उठाओगे कहाँ तक
अस्बाब में इक रंज-ए-मसाफ़त भी बहुत है
दो साँस भी हो जाएँ बहम हब्स-ए-बदन में
ऐ 'उम्र-ए-रवाँ इतनी करामत भी बहुत है
कुछ उजरत-ए-हस्ती भी नहीं अपने मुताबिक़
कुछ कार-ए-तनफ़्फ़ुस में मशक़्क़त भी बहुत है
अब मौत मुझे मार के क्या देगी 'ग़ज़ंफ़र'
आँखों को तो ये आलम-ए-हैरत भी बहुत है
- पुस्तक : Pakistani Adab (पृष्ठ 622)
- रचनाकार : Dr. Rashid Amjad
- प्रकाशन : Pakistan Academy of Letters, Islambad, Pakistan (2009)
- संस्करण : 2009
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