बे-मेहरी-ए-दोस्ताँ अलग है
बे-मेहरी-ए-दोस्ताँ अलग है
और उस पे ग़म-ए-जहाँ अलग है
आ'साब अलग थके हुए हैं
और दिल है कि सरगिराँ अलग है
उस रंज को बीच में न लाओ
उस रंज की दास्ताँ अलग है
मौक़ूफ़ है जो तिरी नज़र पर
वो लज़्ज़त-ए-जावेदाँ अलग है
सरसब्ज़ है जो तिरे करम से
वो शाख़-ए-मलाल-ए-जाँ अलग है
ऐ मज्मा-ए-इल्म-ओ-फ़ज़्ल-ओ-दानिश
तुम सब से मिरा बयाँ अलग है
लगता है मैं अजनबी हूँ तुम में
लगता है मिरी ज़बाँ अलग है
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