बिरादरों का मिज़ाज बदले या घर का सारा रिवाज बदले
बिरादरों का मिज़ाज बदले या घर का सारा रिवाज बदले
रही ये ख़्वाहिश हमेशा अपनी जो कल बदलना है आज बदले
हमें तो मतलब है रोटियों से जो बाल-बच्चों का पेट भर दे
ग़रज़ नहीं है कोई भी हम को ये तख़्त बदले कि ताज बदले
अभी भी ज़ेहनों में सादगी है कि गाँव छोड़े ज़माना बीता
कि शहर में बस गए हैं लेकिन कहाँ हमारे मिज़ाज बदले
जो वक़्त के साथ चलते रहते ये बात पैदा न होती हरगिज़
हो मुस्तहिक़ तुम सज़ा के यूँ भी न तुम ने अपने रिवाज बदले
बुरे-भले का तू ख़ुद है मालिक जो दिल में आए वो कर ले 'सैफ़ी'
तुझे बदलना है तो बदल जा नहीं ये मुमकिन समाज बदले
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