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बुझे अगर बदन के कुछ चराग़ तेरे हिज्र में

मोहम्मद अहमद

बुझे अगर बदन के कुछ चराग़ तेरे हिज्र में

मोहम्मद अहमद

MORE BYमोहम्मद अहमद

    बुझे अगर बदन के कुछ चराग़ तेरे हिज्र में

    जला लिए सुख़न के कुछ चराग़ तेरे हिज्र में

    चमन ख़िज़ाँ ख़िज़ाँ हो जब बुझा बुझा हुआ हो दिल

    करें भी क्या चमन के कुछ चराग़ तेरे हिज्र में

    शब-ए-फ़िराक़ पर हुआ शब-ए-विसाल का गुमाँ

    महक उठे मिलन के कुछ चराग़ तेरे हिज्र में

    उदासियों के हब्स में जो तेरी याद गई

    तो जल उठे पवन के कुछ चराग़ तेरे हिज्र में

    सो क्यों दिल के दाग़ गिन के काट लीजे आज शब

    गिने थे कल गगन के कुछ चराग़ तेरे हिज्र में

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