बुलंद हौसले आली जनाब रखते हैं
बुलंद हौसले आली जनाब रखते हैं
हम अपनी पलकों पे रौशन से ख़्वाब रखते हैं
हज़ीमतों का कहीं भी तो इंदिराज नहीं
हर इक वरक़ नई फतहों के बाब रखते हैं
हम अपनी प्यास पे रखते हैं लोगो ज़ब्त-ए-अज़ीम
पता है ख़्वाब के सहरा सराब रखते हैं
कभी दराज़ न हम ने किया है दस्त-ए-तलब
कि फ़ज़्ल-ए-रब पे यक़ीं बे-हिसाब रखते हैं
हो आरज़ू जिन्हें औज-ए-फ़लक को छूने की
अमल पर अपने कड़ा एहतिसाब रखते हैं
सितम न तोड़ रईयत पे वक़्त के हाकिम
ये अपने पहलू में इक इंक़लाब रखते हैं
मैं अपने फ़े'ल-ओ-अमल पर खरी रही 'मीना'
अमल कसौटी पे हम बे-हिजाब रखते हैं
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