चाहे जन्नत न मिले चाहे ख़ुदाई न मिले
चाहे जन्नत न मिले चाहे ख़ुदाई न मिले
है दुआ मेरी यही तुझ से जुदाई न मिले
कौन सी राह चुनी तुम ने मोहब्बत के लिए
चल के आ जाओ मगर आबला-पाई न मिले
साथ तेरा हो अगर मौत भी आए हमदम
ज़ीस्त जो मुझ को मिले तुझ से पराई न मिले
अजनबी अपने ही बन जाते हैं जिन से यारो
नाम को मेरे कभी ऐसी बुराई न मिले
जो बदल डाले मिरी बात का मतलब ही 'सहर'
मेरे अशआ'र में ऐसी भी सफ़ाई न मिले
- पुस्तक : Ahad-e-rafta (पृष्ठ 86)
- रचनाकार : Ramzan Ali Sahar
- प्रकाशन : Ramzan Ali Sahar (2011)
- संस्करण : 2011
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