चमन को आग लगाने की बात करता हूँ
समझ सको तो ठिकाने की बात करता हूँ
शराब-ए-तल्ख़ पिलाने की बात करता हूँ
ख़ुद-आगही को जगाने की बात करता हूँ
सुखनवरों को जलाने की बात करता हूँ
कि जागतों को जगाने की बात करता हूँ
उठी हुई है जो रंगीनी-ए-तग़ज़्ज़ुल पर
वो हर नक़ाब गिराने की बात करता हूँ
इस अंजुमन से उठूँगा खरी खरी कह कर
फिर अंजुमन में न आने की बात करता हूँ
यहाँ चराग़ तले लूट है अंधेरा है
कहाँ चराग़ जलाने की बात करता हूँ
वो बाग़बान! जो फूलों से बैर रखता है
ये आप ही के ज़माने की बात करता हूँ
रविश रविश पे बिछा दो बबूल के काँटे
चमन से लुत्फ़ उठाने की बात करता हूँ
वहाँ शराब पिलाता हूँ अहल-ए-बीनश को
जहाँ भी ख़ून बहाने की बात करता हूँ
मिज़ाज-ए-हुस्न कहीं बद-मज़ा न हो जाए
अदल बदल के फ़साने की बात करता हूँ
मगर फ़रेब-दही में दरकार है अछूता-पन
तिरे फ़रेब में आने की बात करता हूँ
वहीं से शेर में बरजस्तगी नहीं रहती
जहाँ से हाल छुपाने की बात करता हूँ
पिला रहा हूँ मैं काँटों को ख़ून-ए-दिल ऐ 'शाद'
गुलों के रंग उड़ाने की बात करता हूँ
- पुस्तक : Kulliyat-e-Shad Aarfi (पृष्ठ 76)
- रचनाकार : Muzaffar Hanfi
- प्रकाशन : National AZcademy Delhi (1975)
- संस्करण : 1975
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.