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चमन में जब बहार आई तो दीवाने मचल उट्ठे

हामिद-उल-अंसारी अंजुम

चमन में जब बहार आई तो दीवाने मचल उट्ठे

हामिद-उल-अंसारी अंजुम

MORE BYहामिद-उल-अंसारी अंजुम

    चमन में जब बहार आई तो दीवाने मचल उट्ठे

    हुआ जब ज़िक्र-ए-चश्म-ए-मस्त पैमाने मचल उट्ठे

    हवा-ए-फ़स्ल-ए-गुल आई घटा घनघोर जब छाई

    चला यूँ दौर-ए-पैमाना कि मयख़ाने मचल उट्ठे

    यक़ीनन रब्त-ए-बाहम कोई हुस्न-ओ-'इश्क़ में होगा

    जली जब शम' महफ़िल में तो परवाने मचल उट्ठे

    पिलाए जा अरे साक़ी अगर कुछ भी है मय बाक़ी

    तिरी दरिया-दिली देखी तो मस्ताने मचल उठ्ठे

    किसी जान-ए-वफ़ा का तज़्किरा उन्वान-ए-महफ़िल है

    बहारें झूम उट्ठीं और अफ़्साने मचल उठ्ठे

    कुछ इस अंदाज़ से ज़िंदाँ में पैग़ाम-ए-बहार आया

    कि दीवाने तो दीवाने थे फ़रज़ाने मचल उट्ठे

    चले अहल-ए-जुनूँ जोश-ए-जुनूँ में जब बयाबाँ को

    किया काँटों ने इस्तिक़बाल वीराने मचल उट्ठे

    बरहमन मस्त होता है फ़क़त नाक़ूस की लय पर

    सुनी बांग-ए-अज़ाँ तस्बीह के दाने मचल उट्ठे

    मिरे इख़्लास-ओ-जज़्ब-ए-दिल की ये तासीर है 'अंजुम'

    यगानों का तो क्या कहना है बेगाने मचल उट्ठे

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