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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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चराग़-ए-शौक़ जला कर कहाँ से जाना था

ख़ावर एजाज़

चराग़-ए-शौक़ जला कर कहाँ से जाना था

ख़ावर एजाज़

MORE BYख़ावर एजाज़

    चराग़-ए-शौक़ जला कर कहाँ से जाना था

    हमें तो हो के सफ़-ए-दुश्मनाँ से जाना था

    ये दिल ये शहर-ए-वफ़ा कब उसे पसंद आया

    वो बे-क़रार था उस को यहाँ से जाना था

    नज़र में रक्खा नहीं एक भी सितारा तिरा

    कि ख़ाक-ज़ाद थे हम आसमाँ से जाना था

    किसी बहाने सही ज़िंदगी का क़र्ज़ उतरा

    हमें तो वैसे भी इक रोज़ जाँ से जाना था

    नदी में रह के चटानों से दरगुज़र करना

    ये हम ने फ़ितरत-ए-मौज-ए-रवाँ से जाना था

    स्रोत :
    • पुस्तक : Quarterly TASTEER Lahore (पृष्ठ 165)
    • रचनाकार : Naseer Ahmed Nasir
    • प्रकाशन : Room No.-1,1st Floor, Awan Plaza, Shadman Market, Lahore (Issue No. 5,6 April To Sep. 1998)
    • संस्करण : Issue No. 5,6 April To Sep. 1998

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