दर्द-ए-दिल कैफ़-ए-अलम सोज़-ए-जिगर से पहले
दर्द-ए-दिल कैफ़-ए-अलम सोज़-ए-जिगर से पहले
अज़मत अब्दुल क़य्यूम ख़ाँ
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दर्द-ए-दिल कैफ़-ए-अलम सोज़-ए-जिगर से पहले
ज़िंदगी कुछ भी न थी तेरी नज़र से पहले
फ़िक्र-ए-फ़र्दा ग़म-ए-इमरोज़ रिवायात-ए-कुहन
कितनी राहें हैं तिरी राहगुज़र से पहले
जिन उजालों को ज़माने की सहर होना है
वो गुज़रते हैं मिरी फ़िक्र-ओ-नज़र से पहले
तुम कहोगे तो ज़बानी भी सुनाऊँ लेकिन
हाल-ए-दिल पूछ तो लो दीदा-ए-तर से पहले
हाए ये बात उजालों को अभी क्या मा'लूम
रात किस तरह से गुज़री है सहर से पहले
जब भी तामीर-ए-नशेमन का ख़याल आया है
मशवरा हम ने किया बर्क़-ओ-शरर से पहले
ज़िंदगानी में मसर्रत की तमन्ना गोया
वो दुआ है जो भटकती है असर से पहले
न वो तारे न वो अरमाँ न वो दिलकश नग़्मे
कितने फ़ानूस बुझे पिछले पहर से पहले
सच तो ये है कि हमें बाग़-ए-जहाँ में अज़्मत
सैकड़ों ख़ार मिले इक गुल-ए-तर से पहले
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