दरमांदगों की आँख से आँसू जो ढल गए
दरमांदगों की आँख से आँसू जो ढल गए
तहनियतुन्निसा बेगम तहनियत
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दरमांदगों की आँख से आँसू जो ढल गए
चश्मे किसी के लुत्फ़-ओ-करम के उबल गए
डाली जो उस ने एक उचटती हुई नज़र
ख़स्ता-दिलान-ए-राह-ए-मोहब्बत बहल गए
हम और बारगाह-ए-रिसालत-पनाह में
मारे ख़ुशी के आँख से आँसू निकल गए
पहुँचे जो हम दयार-ए-मदीना में सर के बल
सब अपने अगले पिछले तसव्वुर बदल गए
फिर हम थे और रौज़ा-ए-अक़्दस की जालियाँ
अरमान क्या बताऊँ कि क्या क्या मचल गए
क़ुर्ब-ए-हुज़ूर धोने लगा दिल के सब उयूब
बातिल तसव्वुरात थे जितने पिघल गए
नाज़ाँ है 'तहनियत' करम-ए-किर्दगार पर
बहके जो थे नसीब वो आख़िर सँभल गए
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