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दश्त-ए-ऐमन से चले कू-ए-बुताँ तक पहुँचे

सय्यद आबिद अली आबिद

दश्त-ए-ऐमन से चले कू-ए-बुताँ तक पहुँचे

सय्यद आबिद अली आबिद

MORE BYसय्यद आबिद अली आबिद

    दश्त-ए-ऐमन से चले कू-ए-बुताँ तक पहुँचे

    तेरे दीवाने रुमूज़-ए-दो-जहाँ तक पहुँचे

    बुत के राँदे हुए अल्लाह के ठुकराए हुए

    आख़िर-ए-कार दर-ए-पीर-ए-मुग़ाँ तक पहुँचे

    ग़म को हैं आर वो आहें कि लबों तक आएँ

    दिल पे हैं बार वो शिकवे कि ज़बाँ तक पहुँचे

    मरहले और भी हैं जाँ से गुज़रने के सिवा

    इश्क़ में हम-नफ़सो कोई कहाँ तक पहुँचे

    तिरे जल्वों की रसाई का तमाशा देखा

    मंज़िल-ए-दिल से चले मंज़िल-ए-जाँ तक पहुँचे

    कारवान-ए-ग़म-ए-दिल दश्त-ए-जुनूँ से गुज़रा

    आज हम ग़ायत-ए-उम्र-ए-गुज़राँ तक पहुँचे

    इश्क़ का साथ दिया सिद्क़-ओ-यक़ीं तक आए

    अक़्ल से काम लिया वहम-ओ-गुमाँ तक पहुँचे

    अहल-ए-मंसब ने किया कोर-निगाहों को सलाम

    अहल-ए-दिल बारगह-ए-दीदा-वराँ तक पहुँचे

    जिन को रहना था रहे हम-सुख़नों के हमराह

    जिन को जाना था गए बज़्म-ए-शहाँ तक पहुँचे

    मिल गईं सब हरम-ओ-दैर की राहें आकर

    शुक्र-सद-शुक्र कि हम शहर-ए-मुग़ाँ तक पहुँचे

    रह गए यार क़तील-ए-ग़म-ए-दौराँ हो कर

    हम से कुछ सोख़्ता-जाँ कू-ए-बुताँ तक पहुँचे

    फिर बहार आई कि नागाह असीरान-ए-ग़यूर

    हम-रह-ए-शाख़-ए-क़फ़स बर्क़-ए-तपाँ तक पहुँचे

    कुछ करो चारागरो दिल की गिराँ-जानी का

    शीशा टूटे तो कफ़-ए-शीशा-गराँ तक पहुँचे

    तुम्हीं सच्चे कि रहा रंग-ए-तग़ाफ़ुल यकसाँ

    हमीं झूटे की ख़मोशी से फ़ुग़ाँ तक पहुँचे

    अपने अहवाल मक़ामात से मैं वाक़िफ़ हूँ

    वो तो हालात हैं जो अहल-ए-जहाँ तक पहुँचे

    ख़ुश-नवाई की मिली दाद कि मेरे अश'आर

    मह-विशॉं कज-कुलहाँ ख़ुश-निगहाँ तक पहुँचे

    मैं ने रस्मन जो किया 'इश्क़-ए-बुताँ से इंकार

    क्या तबस्सुम लब-ए-लालीन-ए-बुताँ तक पहुँचे

    मेरी आँखों से गुरेज़ाँ हैं वो जल्वे अब तक

    अक्स जिन के मिरे आईना-ए-जाँ तक पहुँचे

    दामन-ए-यार की मंज़िल से गुज़र कर आख़िर

    दस्त-ए-उश्शाक़ सर-ए-ताजवराँ तक पहुँचे

    चाँद उतरा मिरे काशाने में 'आबिद' कल रात

    देखिए रात की ये बात कहाँ तक पहुँचे

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