दिल आग में फ़ुर्क़त की जलता है तो जलने दो
दिल आग में फ़ुर्क़त की जलता है तो जलने दो
शो'ले को मोहब्बत के कुछ और मचलने दो
मंज़िल की तड़प आख़िर पहुँचाएगी मंज़िल तक
गिर गिर के सँभलता हूँ गिर गिर के सँभलने दो
बे-राह-रवी मेरी है दर्स-ए-अमल मुझ को
उलझी हुई राहों पे चलता हूँ तो चलने दो
दुनिया ने बदल डाला मफ़्हूम मोहब्बत का
अब साज़-ए-मोहब्बत की आवाज़ बदलने दो
गर्मी-ए-अमल होगी फिर मेरी रग-ओ-पय में
यख़-बस्ता से जज़्बों की ये बर्फ़ पिघलने दो
हर राह पे बिखरे हैं अंगारे तअ'स्सुब के
अंगारों पे चलना है अंगारों पे चलने दो
इस बाग़-ए-वतन की भी कुछ फ़िक्र करो यारो
लिल्लाह इसे भी तो कुछ फूलने फलने दो
लोगो ये ग़नीमत है क्यों इस को बुझाते हो
ये शम-ए-मोहब्बत है दिन-रात इसे जलने दो
आएगी हयात-ए-नौ 'मग़मूम' हर इक दिल में
पैमाना-ए-आतिश में हर शे'र को ढलने दो
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