दिल की दीवार पे मेहराब बना कर रखता
दिल की दीवार पे मेहराब बना कर रखता
तुझ को आँखों के लिए ख़्वाब बना कर रखता
रह गए तुम तो किसी के लिए जुगनू बन कर
मुझ को मिलते तो मैं महताब बना कर रखता
मुझ से लड़ना ही अगर था तो क़बीले में फिर
कई रुस्तम कई सोहराब बना कर रखता
आग पानी में लगानी ही नहीं जब तुम को
ख़ुद को कब तक कोई तालाब बना कर रखता
बर्फ़ जमती ही नहीं जिस्म की दीवारों पर
तू अगर ख़ून को तेज़ाब बना कर रखता
ख़त्म हो जाता मज़ा फिर तो उसे पढ़ने का
तू 'इबारत में जो ए'राब बना कर रखता
ख़त्म कर देता वजूद अपना मोहब्बत के लिए
ख़ुद को क़तरा तुझे सैलाब बना कर रखता
सब हैं तलवार ये लकड़ी की मगर ऐ 'दानिश'
फिर भी कुछ दोस्त कुछ अहबाब बना कर रखता
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