दिल को हम ने माइल-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ रहने दिया
दिल को हम ने माइल-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ रहने दिया
ज़िंदगी को वक़्फ़-ए-आलाम-ए-जहाँ रहने दिया
मुफ़्त में रुस्वा हो क्यों ख़ुद्दारी-ए-अहल-ए-जुनूँ
मैं ने दिल की बात को दिल में निहाँ रहने दिया
हर्फ़ क्यों आए भला का'बा-सिफ़त दिल पर मिरे
गो बुतों को मैं ने दिल के दरमियाँ रहने दिया
हर-नफ़स ताज़ा ख़लिश है हर क़दम ताज़ा सितम
गर्दिश-ए-अय्याम ने कब शादमाँ रहने दिया
हम ने नामूस-ए-गुलिस्ताँ के तहफ़्फ़ुज़ के लिए
बिजलियों की ज़द पे अपना आशियाँ रहने दिया
ले उड़ी होती हवा-ए-गुमरही रस्म-ए-वजूद
वो तो हम ने सर को ज़ेब-ए-आस्ताँ रहने दिया
उफ़ मिरी ख़ल्वत-तलब कैफ़िय्यत-ए-दीवानगी
हसब-ए-अरमाँ तेरी महफ़िल में कहाँ रहने दिया
ये समझ कर उस में शामिल है ख़ुशी तेरी ऐ दोस्त
ज़िंदगी को तेरे ग़म में नौहा-ख़्वाँ रहने दिया
उन की याद-ए-जाँ-फ़ज़ा आई कुछ इस अंदाज़ से
नाम इस का देर तक विर्द-ए-ज़बाँ रहने दिया
कर के चश्म-ए-नाज़ ने शादाब ज़ख़्मों के गुलाब
गुलशन-ए-दिल में बहारों को जवाँ रहने दिया
हम हुजूम-ए-ग़म में 'नासिर' मुस्कुराते ही रहे
ज़िंदगी से मौत को यूँ बद-गुमाँ रहने दया
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