दिल में रहता था मिरे जो कभी धड़कन की तरह
दिल में रहता था मिरे जो कभी धड़कन की तरह
अब मिरी आँख में रहता है वो सावन की तरह
कौन आया है बहारें लिए मेरी जानिब
मेरा एहसास महकने लगा चंदन की तरह
किसी बच्चे की तरह अब भी मचलता है दिल
हाल अपना है जवानी में भी बचपन की तरह
मैं ने रक्खा न कभी बुग़्ज़-ओ-कुदूरत दिल में
दिल मिरा साफ़ है शफ़्फ़ाफ़ है दर्पन की तरह
ज़ेहन में फैली है अफ़्कार के फूलों की महक
है मिरा दिल ये महकते हुए गुलशन की तरह
दिल के दरवाज़े को हरगिज़ न मुक़फ़्फ़ल कीजे
इस को वा रखिए हमेशा किसी आँगन की तरह
अपने बंदों से उसे प्यार है कितना 'राहत'
दिल में रहता है मिरे अपने ही मस्कन की तरह
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