दिल तो फूलों से ब-तहरीक-ए-ग़म-ए-दिल बाँधा
रोचक तथ्य
(Tarahi Mushaira, in the memory of Basir Konoli)
दिल तो फूलों से ब-तहरीक-ए-ग़म-ए-दिल बाँधा
हम ने गुलशन से मगर ख़ुद को ब-मुश्किल बाँधा
वक़्त-ओ-हालात ने माहौल अजब मिल बाँधा
क़त्ल-गाहों ने समाँ सूरत-ए-महफ़िल बाँधा
बाँधते क्या थे तअल्लुक़ के ये रिश्ते हम को
जब्र-ए-फ़ितरत है कि बे-तौक़-ओ-सलासिल बाँधा
कौन पहुँचा है सर-ए-मंज़िल-ए-हस्ती अब तक
जो जहाँ रह गया थक कर उसे मंज़िल बाँधा
तुम से रोका न गया हाथ किसी क़ातिल का
जब भी बाँधा है फ़क़त बाज़ू-ए-बिस्मिल बाँधा
आज़माना था मेरे ज़ौक़-ए-नज़र को शायद
हर जगह उस ने नया पर्दा-ए-हाइल बाँधा
हम ने जब से तिरी राहों में क़दम रखा है
किसी मंज़िल का तसव्वुर भी ब-मुश्किल बाँधा
ग़ैर अगर साज़िशें करते तो कोई बात भी थी
मोरचा अपनों ने अपनों के मुक़ाबिल बाँधा
क़दम-ए-क़ाफ़िला-ए-उम्र हैं साँसें क्या हैं
बे-इरादा भी मिला हर कोई महमिल बाँधा
ख़ून-ए-मक़्तूल में क्या शान-ए-रवादारी थी
चश्म-ए-इंसाफ़ ने क़ातिल को न क़ातिल बाँधा
ज़िंदगी 'शौक़' हमारी भी अजब गुज़री है
दिल उठाया न ज़माने से कभी दिल बाँधा
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