दिल उन को दिया था न दिल-आज़ार समझ कर
दिल उन को दिया था न दिल-आज़ार समझ कर
हम फँस गए धोके में वफ़ादार समझ कर
ख़ुर्शीद करेगा रुख़ इधर बहर-ए-तमाशा
महशर को तिरे गर्मी-ए-बाज़ार समझ कर
ऐ कब्क बहुत खा चुके हैं ठोकरें हर गाम
चलना तू मिरे यार की रफ़्तार समझ कर
तारीकी-ए-मर्क़द से न घबराता मैं लेकिन
ख़ौफ़ आ गया फ़ुर्क़त की शब-ए-तार समझ कर
वो ज़ार-ए-सियह-बख़्त हूँ दरबानों ने उस के
टोका न मुझे साया-ए-दीवार समझ कर
ये महव-ए-शहादत था कि बे-मर्ज़ी-ए-क़ातिल
अबरू पे गला रख दिया तलवार समझ कर
ये बे-ख़ुद-ए-उल्फ़त था दम-ए-सैर-ए-गुलिस्ताँ
शमशाद से लिपटा क़द-ए-दिलदार समझ कर
कुछ रोज़ उन्हें सुन लीजियो कमसिन है अभी तो
ख़ुद तर्क करेगा वो बद-अतवार समझ कर
उश्शाक़ को जल मरने की होती है तमन्ना
बिजली को तिरा परतव-ए-रुख़्सार समझ कर
देखी मिरे यूसुफ़ की जो हैं गर्मी-ए-बाज़ार
चुप हो गए कुछ दिल में ख़रीदार समझ कर
नाज़ुक है बहुत वो कहीं बल कोई न पड़ जाए
लिपटे कमर-ए-यार से तलवार समझ कर
बुलबुल की मोहब्बत का 'क़लक़' भेद खुला आज
आशिक़ है गुल-ए-तर पे ये ज़रदार समझ कर
- Arshad Ali Khan Qalaq
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