दुनिया-ए-दिल सजाऊँ अगर मेरा बस चले
दुनिया-ए-दिल सजाऊँ अगर मेरा बस चले
अपना तुम्हें बनाऊँ अगर मेरा बस चले
है कोई बात जिस से हूँ वारफ़्ता-ए-ख़याल
तुम को न भूल जाऊँ अगर मेरा बस चले
ये अजनबी हयात ये पैहम शिकस्त-ए-दिल
हर शय को भूल जाऊँ अगर मेरा बस चले
हर चंद अर्ज़-ए-शौक़ है पाबंद-ए-एहतियात
सब कुछ तुम्हें सुनाऊँ अगर मेरा बस चले
दर-अस्ल इक अज़ाब-ए-मुसलसल है ज़िंदगी
दुनिया से लौट जाऊँ अगर मेरा बस चले
मेरी वफ़ा को आप ने तो आज़मा लिया
मैं भी तो आज़माऊँ अगर मेरा बस चले
मेरी तबाहियों पे हैं अहबाब ख़ंदा-ज़न
मैं ख़ुद न मुस्कुराऊँ अगर मेरा बस चले
वज्ह-ए-सुकून-ए-ज़ीस्त है 'रिफ़अत' फ़रेब-ए-दोस्त
फिर से फ़रेब खाऊँ अगर मेरा बस चले
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