दुनिया पे मेरे फ़न का असर बाद में हुआ
दुनिया पे मेरे फ़न का असर बाद में हुआ
पहले तो ऐब था ये हुनर बाद में हुआ
बरसों सराब बन के रहा मेरी आँख में
इक शख़्स वो जो दीदा-ए-तर बाद में हुआ
सोहबत में मेरी था तो कुशादा थी उस की फ़िक्र
वो तंग-ज़ेहन तंग-नज़र बाद में हुआ
इक शे'र रात ज़ेहन के काग़ज़ पे नींद में
होने से रह गया था मगर बाद में हुआ
कूचे से उस ने मुझ को निकाला तो शोर क्यों
आदम का भी बहिश्त-बदर बाद में हुआ
कहते हैं लोग उस की तो फ़ितरत थी धूप की
वो शख़्स चलता फिरता शजर बाद में हुआ
हम ख़ानक़ाह-ए-इश्क़ के पहले मुरीद हैं
मजनूँ का तो इधर से गुज़र बाद में हुआ
'दिलबर' ने बार बार उजाड़ा है लूट कर
आबाद अपने दिल का नगर बाद में हुआ
- पुस्तक : Word File Mail By Kumail Haider
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