फ़ज़ा बदले हवा बदले मकाँ बदले ज़माँ बदले
फ़ज़ा बदले हवा बदले मकाँ बदले ज़माँ बदले
ज़रा तुम मुस्कुरा तो दो कि रंग-ए-आसमाँ बदले
न फूलों में वो बू बाक़ी न तारों में ज़िया बाक़ी
निगाह-ए-नाज़ क्या बदली ज़मीन-ओ-आसमाँ बदले
कहो तो कुछ मिला भी जाँ-निसारों पर सितम कर के
न कुछ हासिल हो जिस से अब वो तर्ज़-ए-इम्तिहाँ बदले
वही हम हैं वही नाकामियाँ हैं और वही ग़म है
न दौर-ए-आसमाँ बदला न दौर-ए-आसमाँ बदले
ख़ुदा क्या और बुत क्या दैर-ओ-का'बा क्या कलीसा क्या
नज़र आए तुम्हीं 'नाशाद' को नाम-ओ-निशाँ बदले
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