'ग़ालिब' का रंग 'मीर' का लहजा मुझे भी दे
'ग़ालिब' का रंग 'मीर' का लहजा मुझे भी दे
लफ़्ज़ों से खेलने का सलीक़ा मुझे भी दे
तेरी नवाज़िशें हैं हर इक ख़ास-ओ-आम पर
दरिया है तेरा नाम तो क़तरा मुझे भी दे
सज्दों को मेरे फिर तिरी चौखट नसीब हो
मंज़िल तलक पहुँचने का रस्ता मुझे भी दे
आख़िर मिरी दुआ से असर क्यों चला गया
मेरी भी सुन ले ख़ुशियों का तोहफ़ा मुझे भी दे
सब की मुरादें आईं भरी सब की झोलियाँ
दामन मिरा ही ख़ाली है मौला मुझे भी दे
- पुस्तक : مرا انتظار کرنا (पृष्ठ 80)
- रचनाकार : ڈاکٹر نسیم نکہت
- प्रकाशन : بالمقابل ٹوریہ گنج اسپتال تلسی داس مارگ۔4 (2010)
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