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गुल हैं तो आप अपनी ही ख़ुश्बू में सोचिए

ज़फ़र सहबाई

गुल हैं तो आप अपनी ही ख़ुश्बू में सोचिए

ज़फ़र सहबाई

MORE BYज़फ़र सहबाई

    गुल हैं तो आप अपनी ही ख़ुश्बू में सोचिए

    जो कुछ भी सोचना है वो उर्दू में सोचिए

    दिल में अगर नहीं है किसी ज़ख़्म की नुमूद

    सुर्ख़ी कहाँ से गई आँसू में सोचिए

    ये मसअला नहीं कि जलेंगे कहाँ चराग़

    कैसे हवाएँ आएँगी क़ाबू में सोचिए

    यूँ सरसरी गुज़रिए उस दश्त-ए-कर्ब से

    वहशत कि इज़्तिराब है आहू में सोचिए

    कुछ तो ख़बर निकालिए कैसे लगा ये रोग

    क्यूँ ढल रहा है आदमी वस्तू में सोचिए

    की आप ने जो पुर्सिश-ए-अहवाल शुक्रिया

    हम कैसे होंगे सल्तनत-ए-हू में सोचिए

    ख़ुद पूछती है आप से तन्हाई आप की

    महताब क्यूँ है रात के पहलू में सोचिए

    वो जिस का क़ुर्ब आप को मिलना मुहाल हो

    क्या हो जो बैठ जाए वो बाज़ू में सोचिए

    स्रोत :
    • पुस्तक : aatish zer pa (पृष्ठ 25)
    • रचनाकार : zafar sehbai
    • प्रकाशन : zafar sehbai Bhopal (2009)
    • संस्करण : 2009

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