ग़ुंचे ने ताज गुल ने किया पैरहन दुरुस्त
ग़ुंचे ने ताज गुल ने किया पैरहन दुरुस्त
शादी बहार की है हुआ है चमन दुरुस्त
पैग़ाम-ए-रुस्तख़ेज़ है आमद बहार की
मर कर हुई है नर्गिस-ए-बीमार तंदुरुस्त
रक्खा दहान-ए-तंग ने मतलब को ना-तमाम
निकला तुम्हारे मुँह से न कोई सुख़न दुरुस्त
गुल जल्वा-गर हैं आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार है
कर बाग़बाँ नशेब-ओ-फ़राज़-ए-चमन दुरुस्त
पैवंद-ए-मेहर-ओ-माह लगाता है रोज़-ओ-शब
करता है चर्ख़-ए-पीर रिदा-ए-कुहन दुरुस्त
दस्त-ए-जुनूँ ने क़ैद-ए-तअ'ल्लुक़ से दी नजात
पहुँचा न एक ता-ब-गुलू पैरहन दुरुस्त
करती है जम' बाद-ए-सबा ख़ाक मुंतशिर
होता है फिर निशान-ए-मज़ार-ए-कुहन दुरुस्त
होती हैं जोश-ए-इश्क़ में जो जो शिकायतें
कहता है नाज़ से वो बुत-ए-सीम-तन दुरुस्त
फ़रहाद ने फ़रेब-ए-मोहब्बत में जान दी
समझा कि है मुआमला-ए-पीर-ज़न दुरुस्त
साक़ी भला हो ख़ैर सुबू कोई जाम दे
रक्खे ख़ुदा हमेशा तिरी अंजुमन दुरुस्त
नाहक़ ख़राश ज़ख़्म की देता है ज़ीनतें
करता है शाना ज़ुल्फ़-ए-बुत-ए-सीम-तन दुरुस्त
किस रश्क-ए-गुल की शोहरत-ए-नज़्ज़ारगी है आज
करते हैं ग़ुंचा-हा-ए-चमन पैरहन दुरुस्त
ज़ंग-ए-दुई से आइना-ए-दिल है पाक-ओ-साफ़
रहता है अपना गोशा-ए-बैत-उल-हुज़्न दुरुस्त
बे-फ़ाएदा हैं चारागरों की मशक़्क़तें
होते नहीं हैं 'इश्क़ के बीमार-तन दुरुस्त
चाटा है एक 'उम्र लुआब-ए-ज़बान-ए-तेग़
ज़ख़्मों के मुद्दतों में हुए हैं दहन दुरुस्त
बदलूँ रदीफ़ और कि जी भर गया 'नसीम'
हो और तरह ज़ुल्फ़-ए-उरूस-ए-सुख़न दुरुस्त
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