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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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गुज़रते वक़्त की कोई निशानी साथ रखता हूँ

आफ़ताब हुसैन

गुज़रते वक़्त की कोई निशानी साथ रखता हूँ

आफ़ताब हुसैन

MORE BYआफ़ताब हुसैन

    गुज़रते वक़्त की कोई निशानी साथ रखता हूँ

    कि मैं ठहराव में भी इक रवानी साथ रखता हूँ

    समझ में ख़ुद मिरी आता नहीं हालात का चक्कर

    मकाँ रखता नहीं हूँ ला-मकानी साथ रखता हूँ

    गुज़रना है मुझे कितने ग़ुबार-आलूद रस्तों से

    सो अपनी आँख में थोड़ा सा पानी साथ रखता हूँ

    फ़ना होना अगर लिक्खा गया है मेरे होने में

    तो मैं तुझ को भी दुनिया-ए-फ़ानी साथ रखता हूँ

    स्रोत :
    • पुस्तक : Shabkhoon (Urdu Monthly) (पृष्ठ 645)
    • रचनाकार : Shamsur Rahman Faruqi
    • प्रकाशन : Shabkhoon Po. Box No.13, 313 rani Mandi Allahabad (June December 2005áIssue No. 293 To 299âPart II)
    • संस्करण : June December 2005áIssue No. 293 To 299âPart II

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