हाँ मोहतसिब अगर ख़ुम-ओ-मीना शिकस्त हो
हाँ मोहतसिब अगर ख़ुम-ओ-मीना शिकस्त हो
सुलेमान शिकोह गर्डर फ़ना
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हाँ मोहतसिब अगर ख़ुम-ओ-मीना शिकस्त हो
साथ ही तुम्हारे सर का भी कासा शिकस्त हो
जल्वा जो हुस्न-ए-दुख़्तर-ए-रज़ का तू देख ले
क़ाज़ी वुज़ू-ए-इस्मत-ए-तक़्वा शिकस्त हो
मस्तों की महफ़िलों में किसी दिन जो आ फँसे
ज़ाहिद के अह्द-ए-सौम का पाया शिकस्त हो
सूरत-नुमा हो इश्क़ तिरा फिर कहाँ अगर
आईना-ए-जमाल-ए-सरापा शिकस्त हो
क्या ग़म जो टूट जाएँ जिगर जाँ कलेजा दिल
पर तेरी चाह की न तमन्ना शिकस्त हो
बे-शक ख़ुदा बने जो 'फ़ना' तोड़े अबदियत
ख़ुद-बीनियों का अपनी जो पाया शिकस्त हो
- पुस्तक : غزل اس نے چھیڑی (पृष्ठ 25)
- प्रकाशन : ریختہ بکس بی۔37،سیکٹر۔1،نوئیڈا (2017)
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