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हाँ पहले डरते थे पर अब मज़ाक़ करते हैं

काज़िम हुसैन काज़िम

हाँ पहले डरते थे पर अब मज़ाक़ करते हैं

काज़िम हुसैन काज़िम

MORE BYकाज़िम हुसैन काज़िम

    हाँ पहले डरते थे पर अब मज़ाक़ करते हैं

    हमारे साथ यहाँ सब मज़ाक़ करते हैं

    हम अपनी ज़ात की संजीदगी पे हँसते हैं

    उसूल बनते हैं वो जब मज़ाक़ करते हैं

    मुझे यक़ीन तो होना कि मैं यक़ीनन हूँ

    मैं मुंतज़िर हूँ कि वो कब मज़ाक़ करते हैं

    हमें क़ुबूल तहज्जुद के वक़्त से पहले

    हम अपनी ज़ात से हर शब मज़ाक़ करते हैं

    शब-ए-फ़िराक़ सहीफ़े में जब है ढल जाती

    जो अश्क ज़िंदा हों वो तब मज़ाक़ करते हैं

    ख़ुद अपने जैसा उन्हें भी सख़्त-गीर बना

    कभी कभी तो तिरे लब मज़ाक़ करते हैं

    मैं बे-सलीक़ा ख़यालों का मो'तदिल मिस्रा

    सुख़नवरी के जो हैं ढब मज़ाक़ करते हैं

    हमें भी शौक़ है देखें हँसी को बनते हुए

    ज़रा बताओ ना वो कब मज़ाक़ करते हैं

    मैं उँगलियों के तसर्रुफ़ में रौशनी रख दूँ

    बदन के ज़ाविए यारब मज़ाक़ करते हैं

    अगर पूरे तक़ाज़े हों अद्ल के 'काज़िम'

    तो कुर्सियों से भी मंसब मज़ाक़ करते हैं

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